प्रशांत गुप्ता, रायपुर। आप शहर के पुराने लोगों से पूछे कि रामजी हलवाई की दुकान कहां है, तो शायद ही ऐसा कोई शख्स हो जो इस दुकान से अपरिचित हो। हर कोई जानता है बालूशाही वाले रामजी हलवाई की दुकान रामसागर पारा में है।
इस रास्ते ही आप गुजर जाएं तो खुशबू से ही रूक जाएंगे, किसी से पूछने की जरुरत नहीं पड़ेगी। दुकान में रोजाना कितनी बालूशाही बनती है, दुकान के मालिक विनोद अग्रवाल कहते हैं कि कभी कड़ाही खाली नहीं रहती।
साल 1890 यह वह साल था जब रामजी हलवाई ने बालूशाही की दुकान शुरू की थी, और आज वह दिन है जब उनकी पांचवी चौथी पीढ़ी में विनोद और उनके भाई, और इनके बेटे पांचवी पीढ़ी में दुकान का संचालन कर रहे हैं।
विनोद के तीन बेटे हैं, दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। अमेरिका में नौकरी लग गई थी, अच्छा पैकेज भी था, लेकिन बेटों को जाने नहीं दिया। कहा- अपना पुश्तैनी कारोबार कौन संभालेगा। आज दोनों बेटे दुकान में बैठते हैं, तीसरा बेटा 11वीं की पढ़ाई कर रहा है वह भी दुकान संभालता है।
सबकी ड्यूटी शिफ्ट से लगती है। अब हम स्वाद की बात कर लें। आप अगर मिठाई को पसंद करते हैं तो बालूशाही का स्वाद जरूर चखें। विनोद की मांग है कि डॉक्टर्स के लिए एमबीबीएस, इंजीनियर के लिए इंजीनियरिंग कोर्स हैं तो क्यों नहीं अच्छे बाबर्ची के लिए कोई प्रशिक्षण संस्थान नहीं खोला जाता। बहरहाल इनके यहां इलाहाबाद के लोग बालूशाही, नमकीन बनाते हैं।
सन् 2000 से 100 रुपए किलो है रेट
दर के मामले में भी बालूशाही सभी मिठाइयों पर भारी है, भारी ऐसे कि दाम आपकी जेब में है। महज 100 रुपए किलो, अब इतनी सस्ती बाजार में दूसरी कोई मिठाई है तो नहीं। विनोद अग्रवाल बताते हैं की 2000 में आखिरी बार दर बढ़ाई गई, अभी तो कोई विचार नहीं है।
दो घंटे से ज्यादा नहीं रखते कच्ची सामग्री
बालूशाही बनाने के लिए मैदा, घी, दही और शक्कर के साथ जलेबी के रंग का इस्तेमाल होता है। इस सामग्री को हाथों से गूंथकर तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि दो घंटे से ज्यादा पुरानी बालूशाही की कच्ची सामग्री इस्तेमाल में नहीं लाई जाती, क्योंकि स्वाद फीका हो जाता है। ताजापन नहीं बचता है।