फोटो - भैरव मंदिर और राजकुमार व्यास
भैरव अष्टमी पर विशेष
रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
भैरव बाबा को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है, देशभर में अनेक मंदिर हैं, जहां भैरव बाबा दो रूपों में विराजते हैं। पहला रूप मूर्ति का और दूसरा रूप लिंग का। मूर्ति रूप वाले भैरव बाबा मंदिर के भीतर विराजते हैं और लिंग रूप वाले खुले आसमान तले विराजते हैं, यानी भैरव बाबा के उपर छत नहीं बनाई जाती। ऐसी मान्यता है कि वे जिस क्षेत्र में विराजते हैं उस पूरे क्षेत्र की रक्षा करते हैं, इसलिए उन्हें क्षेत्रपाल, द्वारपाल, सेनापति के रूप में पूजा जाता है। छत्तीसगढ़ में ऐसा ही एकमात्र खुले आकाश तले विराजित भैरव बाबा का मंदिर बूढ़ा तालाब के समीप स्थित बूढ़ेश्वर मंदिर प्रांगण में है।
कोडमदेसर के भैरव रूप में है प्रतिमा
बूढ़ेश्वर मंदिर के ट्रस्टी राजकुमार व्यास बताते हैं कि मंदिर प्रांगण में राजस्थान के कोडमदेसर गांव के भैरव बाबा का प्रतिरूप प्रतिष्ठापित है। उस गांव के निवासी मानते हैं कि भैरव बाबा गांव के आसपास के सभी खेतों की रक्षा करते हैं, चूंकि भैरव बाबा लिंग रूप में प्रतिष्ठापित हैं और मान्यता के अनुसार लिंग रूप वाले भैरव बाबा की छत नहीं बनाई जाती इसलिए उक्त प्रतिमा मंदिर के भीतर नहीं बाहर प्रांगण में खुले आसमान तले विराजित है। गर्मी, ठंड, बारिश के मौसम में भी प्रतिमा पर किसी भी तरह का विपरीत असर नहीं होता। बाबा के मनमोहक रूप का दर्शन करने दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं।
मंदिर से बाहर नहीं जाता प्रसाद
मंदिर की मान्यता के अनुसार भैरव बाबा को अर्पित व्यंजनों को मंदिर परिसर में ही ग्रहण किया जाता है। श्रद्धालुओं को विशेष निर्देश दिया जाता है कि वे प्रसाद को मंदिर परिसर से बाहर न लेकर जाएं।
तिल के तेल, सिंदूर से श्रृंगार
मंगलवार को अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव अष्टमी पर भैरव बाबा का पंचामृत से अभिषेक किया जाएगा। तिल के तेल, सिंदूर, और चांदी-सोना, मालीपाणा के वर्क का लेप करके सुगंधित फूलों एवं रजत आभूषण से आकर्षक श्रृंगार किया जाएगा। दोपहर 2 बजे अभिषेक, 3 बजे आंगी श्रृंगार, शाम 5 बजे हवन और शाम 6 बजे से आरती और प्रसादी वितरण होगा।
सोमरस का भोग
भैरव बाबा को सोमरस का भोग लगाने की परंपरा है। भक्तगण भी बाबा को भोग अर्पित करने आते हैं।
काशी विश्वनाथ में पूर्ण मंदिर और उज्जैन में आधा मंदिर
ऐसा माना जाता है कि भैरव बाबा के 52 स्वरूप है। काशी विश्वनाथ में मूर्ति स्वरूप होने से यहां पूर्ण मंदिर है लेकिन उज्जैन में लिंग और मूर्ति दोनों स्वरूप होने से आधे मंदिर में छत और आधा मंदिर बिना छत का है।
महामाया मंदिर में काला-गोरा भैरव
राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में भैरव बाबा के दोनों स्वरूप काला और गोरा भैरव मूर्ति रूप में मंदिर के भीतर विराजित हैं।
ग्रह दोषों से मिलती है मुक्ति
भैरव बाबा को भगवान शंकर के पांचवें अवतार रूद्रावतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भैरव बाबा की पूजा-अर्चना से कालसर्प दोष, मांगलिक दोष, शनि, मंगल, राहु ग्रहों के कुप्रभाव से मुक्ति मिलती है।