CG News: फाइल में कैद लेमरू हाथी रिजर्व... बजट में 20 करोड़ रुपये, खर्च कौड़ीभर नहीं
लेमरू हाथी रिजर्व परियोजना प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। 20 करोड़ का बजट होने के बावजूद कार्ययोजना न बनने से राशि खर्च नहीं हुई। नतीजतन हाथी-म ...और पढ़ें
Publish Date: Mon, 29 Dec 2025 11:21:27 AM (IST)Updated Date: Mon, 29 Dec 2025 11:21:27 AM (IST)
लेमरू हाथी रिजर्व की दब गई फाइल। (फाइल फोटो)HighLights
- लेमरू हाथी रिजर्व बजट 20 करोड़, कार्ययोजना शून्य
- 2019-24 में हाथी हमलों से 303 ग्रामीणों की मौत
- सरगुजा बिलासपुर कोरबा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित
संदीप तिवारी, नईदुनिया प्रतिनिधि। जंगलों में हाथी और इंसानों के बीच छिड़ा खूनी संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है, लेकिन वन विभाग के आला अधिकारी कुंभकर्णी नींद में सोए हुए हैं। कोरबा से सरगुजा की सीमा तक लगे प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण "लेमरू हाथी रिजर्व" परियोजना प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। आलम यह है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में इस प्रोजेक्ट के लिए 20 करोड़ की राशि बजट में रखी थी, लेकिन विभाग एक कार्ययोजना तक तैयार नहीं कर सका।
नतीजा, धरातल पर फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं हुई और हाथी-मानव द्वंद्व का ग्राफ आसमान छू रहा है। हाथी-मानव द्वंद्व की आग सबसे ज्यादा सरगुजा और बिलासपुर वनवृत्त में धधक रही है। कोरबा, कटघोरा, धरमजयगढ़ और सरगुजा के तमाम वनमंडल आज हाथियों के स्थायी ठिकाने बन चुके हैं। इन इलाकों में सूरज ढलते ही दहशत का पहरा शुरू हो जाता है। आए दिन किसी न किसी घर का चिराग बुझ रहा तो कहीं मेहनत से उगाई फसलें चौपट हो रही।
कागजों पर योजना, जमीन पर "मौत"
- प्रदेश में पिछले पांच वर्षों (2019-2024) के आंकड़े रूह कंपाने वाले हैं। इस दौरान 303 ग्रामीण हाथियों के हमले में अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि करंट और अवैध शिकार के चलते 90 हाथियों की भी मौत हुई है। औसतन हर साल 60 से ज्यादा लोग काल के गाल में समा रहे हैं, फिर भी लेमरू प्रोजेक्ट को लेकर विभाग की फाइलें सचिवालय की धूल फांक रही हैं।
- मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार की मंशा के अनुरूप इस राशि से रिजर्व क्षेत्र में हाथियों के लिए चारागाह विकास, फलदार पौधों का रोपण और जल स्रोतों का निर्माण होना था, ताकि हाथी गांवों का रुख न करें। साथ ही, क्विक रिस्पांस टीम (क्यूआरटी) का गठन होना था, लेकिन अफसरों की उदासीनता ने इन सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया। बजट होने के बावजूद कार्ययोजना न बन पाना विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवालिया निशान खड़े करता है।
विभाग के अनोखे प्रयोग रहे फिसड्डी
विभाग ने हाथियों को रोकने के लिए अब तक जितने भी जुगाड़ अपनाए, वे सब हास्यास्पद और विफल हुए।
- मधुमक्खी पालन से सोचा था हाथी डरेंगे, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
- खेतों में पुतले खड़े किए गए और हाथियों के गले में घंटी बांधने का सपना देखा गया, जो केवल मजाक बनकर रह गया।
- छह हाथियों को कालर पहनाए गए, लेकिन आज एक के गले में भी यह नहीं है।
- बिगड़ैल हाथियों को सुधारने के लिए कर्नाटक के प्रशिक्षित हाथी लाए गए। यहां वह भी फेल हो गए।
मौतों का गणित (2019-2024)
साल 2019-20 में हाथी के हमलों में सबसे अधिक 77 लोगों की मौत हुई थी। 2020-21 में यह घटकर 42 रह गई, जो कि 2021-22 में बढ़कर 64 हो गई थी। 2022-23 में फिर कमी आई थी और आंकड़ा 59 पहुंच गया था। 2023-24 में 51 लोगों की मौत हुई थी। इन पांच सालों में कुल 303 लोग हाथियों का शिकार बन चुके हैं।
क्या है लेमरू हाथी रिजर्व परियोजना
- साल 2018 में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रदेश की सत्ता संभाली, तो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक बड़ा दांव खेला गया। सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों के आवंटन पर कड़ा रुख अपनाते हुए उन्हें रोकने का निर्णय लिया।
- हाथियों के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित करने के उद्देश्य से 3,827 वर्ग किमी के विशाल दायरे में लेमरू हाथी रिजर्व बनाने की घोषणा की। सरकार का तर्क था कि इस परियोजना से हाथियों को सुरक्षित गलियारा मिलेगा। जैव विविधता से समृद्ध इस वन क्षेत्र को खनन माफियाओं से बचाया जा सकेगा।
अरुण कुमार पांडेय, मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव), छत्तीसगढ़ ने कहा कि पिछले साल के बजट की राशि खर्च नहीं हो पाई थी, उसके स्थान पर इस साल नई राशि मिली है। लेमरू परियोजना पर काम जारी है और जल्द ही परिणाम दिखेंगे।