रायपुर। शहर से 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी गांव में निर्मित कौशल्या माता मंदिर उपेक्षा का दंश झेल रहा है। अगा आस्था के केंद्र और देश भर में एकमात्र कौशल्या माता मंदिर के उद्धार को किसी ने पहल नहीं की। मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यहां आने वाले श्रद्दालु आहत होते हैं।
सरकार ने भी मोड़ लिया है मुंह
गुरुवार को नईदुनिया की टीम माता कौशल्या मंदिर पहुंची। चंदखुरी के लोग ऐतिहासिक मंदिर के वजूद को लेकर चिंतित दिखे। उन्होंने बताया कि माता कौशल्या मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर सरकार भी कोई योजना नहीं बना रही है। इस कारण ऐतिहासिक मंदिर की पहचान विश्व स्तर पर नहीं बन पा रही। हर साल प्रस्ताव भेजा जाता है, लेकिन निराशा ही हाथ लगती है।
साक्षी है इतिहास
इतिहास इस बात का साक्षी है कि दक्षिण कौशल यानी छत्तीसगढ़ राज्य मां कौशल्या के नाम से जाना जाता है। इसे भगवान राम का ननिहाल कहा जाता है। सोमवंशी नरेश मां कौशल्या और भगवान राम को 7 तालाबों के बीच स्थापित कर आस्था का दीप जलाया था। इस भक्ति भाव की किरणें आज पूरे देश में फैल रही हैं। धर्म और आस्था से जुड़ी एक ऐसी कहानी निकटतम चंदखुरी गांव की है। दुर्भाग्यवश सोमवंशों का यह ऐतिहासिक मंदिर आज विश्वस्तर पर पहचान बनाने के लिए जूझ रहा है।
उपराष्ट्रपति ने कहा- माता कौशल्या की जन्मभूमि
1 नवंबर को राज्योत्सव के शुभारंभ करने पहुंचे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि-छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां माता कौशल्या की जन्मभूमि होने की मान्यता है। किसी राज्य का मान बनाने के लिए इतना ही काफी है।
स्वप्न आने पर सोमवंशी नरेशों ने बनाया मंदिर
शहर से 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी गांव है। सोमवंशी नरेशों को स्वप्न आने पर उन्होंने जलसेन तालाब खुदवा दिया, जहां माता कौशल्या की दुर्लभ प्रतिमा उन्हें मिली। उनकी गोद में भगवान राम विराजमान दिखे। मां कौशल्या के वापस घर आने की मान्यता पर मंदिर बनवाया गया। यह प्रतिमा 8 वीं शताब्दी की बताई जाती है।
दक्षिण कौशल राजा भानुमंत की बेटी कौशल्या
मंदिर के 75 वर्षीय पुजारी कोड्डू धीवर ने बताया- इसका प्रमाण वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस में मिलता है। चंदखुरी दक्षिण कौशल राज्य (जो अब छत्तीसगढ़ है) का हिस्सा था। राजा भानुमंत की सुपुत्री कौशल्या का विवाह अयोध्या नरेश दशरथ से हुआ था। इस युग के अंत होने के बाद नई सृष्टि की रचना हुई।
राजा मनु और सतरूपा का जन्म हुआ। कठोर तप कर उन्होंने संतान के रूप में भगवान को पाने की कामना की। इसी कामना पर भगवान राम अगले युग में सतरूपा की कोख में जन्मे। दरअसल राजा मनु दशरथ थे और सतरूपा मां कौशल्या थीं। भगवान राम को गोद में लेकर एक प्रतिमा के स्वरूप कौशिल वापस अपने घर दक्षिण कौशल यानी छत्तीसगढ़ (चंदखुरी) में जन्मीं।
दुर्भाग्यवश ऐसा..
- इस प्राचीन मंदिर का आज तक नहीं हो सका विकास। ग्रामीण समिति बनाकर अस्तित्व बनाने में डटे।
- सांसद, विधायक चुने जाने के बाद भी मंदिर के उत्थान के लिए नहीं बन पाई कोई भी योजना। हर साल प्रस्ताव जरूर।
- चंदखुरी में तरह-तरह की औषधियां हैं। मान्यता है कि वैद्यराज सुषेण ने यहीं समाधि ली थी। इसके पहले औषधियों का विस्तार किया था।
ट्रस्ट बनाना जरूरी
प्राचीन मंदिर के विकास के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। लोग समिति बनाकर देख-रेख का जिम्मा उठा रहे हैं। ट्रस्ट बनाना जरूरी है।
- लुंबेश्वर प्रसाद, प्रमुख, माता कौशल्या मंदिर, चंदखुरी