Chhattisgarh Education : रायपुर। मां-बाप और शिक्षक की डांट सुनकर हमें असहज महसूस होता है। इनकी डांट में वह सीख होती है, जो सफलता की ऊंचाईयों तक ले जाती है। ऐसा ही एक वाक्या जुड़ा है छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह टेकाम से। शिक्षा विभाग की एक बैठक के दौरान जब टेकाम ने अपनी बचपन की यादें साझा किया तो सब भाव विभोर हो उठे। गुरुजी की डांट ने उनके जीवन में अनुशासन की वह लकीर खींच दी कि आज वे स्कूल शिक्षामंत्री तक का सफर तय कर सके हैं। दरअसल गुरुओं के सम्मान में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा 'गुरु तुझे सलाम' कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।
इस कार्यक्रम के मौके पर स्कूल शिक्षा मंत्री प्रेमसाय टेकाम ने अपने बाल्यकाल और स्कूल के दिनों को याद किया। उन्होंने जो वाक्या सुनाया वह न केवल प्रेरणास्पद है। बल्कि जीवन में अनुशासन का महत्व को भी रेखांकित करने वाला है। दरअसल, सोशल मीडिया में लाइव प्रसारण के दौरान छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षामंत्री टेकाम ने अपने स्कूल जीवन की यादों में खोते हुए एक रोचक प्रसंग को साझा किया।
उन्होंने कहा कि बचपन में वे ग्राम सिलौटा की प्राथमिक शाला में पढ़ते थे। उनके शिक्षक नारायण सिंह ने एक दिन उन्हें एकाएक स्कूल की चाबी देकर स्कूल खोलने की जिम्मेदारी बतौर सजा सौंपी थी। तब शायद शिक्षक को इसका जरा भी आभास नहीं रहा होगा कि सूरजपुर जिले के विकासखण्ड प्रतापपुर के ग्राम सिलौटा का यह बालक एक दिन छत्तीसगढ़ राज्य के सभी स्कूलों की जिम्मेदारी वाला विभाग संभालेगा।
इसलिए मिली स्कूल खोलने की जिम्मेदारी
स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम बताते हैं कि जब वे प्राइमरी कक्षा में पढ़ाई कर रहे थे, उस समय उनके गांव में स्कूल नहीं था। साथियों के साथ साइकिल चलाकर सात किलोमीटर दूर पढ़ने के लिए स्कूल जाते थे। बालपन में स्कूल जाने में अक्सर उन्हें देर हो जाती थी। गुरुजी लेटलतीफी के आदत से परेशान थे। रोज कुछ न कुछ नया बहानेबाजी भी करते थे। एक दिन गुरूजी ने देर से स्कूल आने का कारण पूछा। तब टेकाम ने डांट से बचने कह दिया कि साइकिल पंचर हो गई थी।
गुरुजी ने सबक सिखाने की ठानी और साइकिल के पास ले जाकर पूछा कि कौन सा चक्का पंचर हुआ था। फिर उनके दोस्त को अलग से ले जाकर पूछा कि साइकिल का कौन सा चक्का पंचर हुआ था। दोनों ने अलग-अलग जवाब दिया। इससे झूठ और बहानेबाजी पकड़ी गई। और झूठ बोलने पर दोनों को खूब डांट पड़ी। स्कूल शिक्षा मंत्री टेकाम भाव विभोर होकर बताते हैं कि झूठ बोलने की सजा और रोज देर से आने को रोकने के लिए उनके शिक्षक नारायण सिंह ने उस दिन स्कूल की चाबी सौंप दी और कहा कि कल से प्रतिदिन सबसे पहले आओगे और स्कूल खोलना है। तब स्कूलों में चपरासी नहीं होते थे। इस जिम्मेदारी से जीवन में इस कदर अनुशासन आया कि हर काम नियत समय पर होने लगा। इस तरह एक स्कूल खोलने की जिम्मेदारी से लेकर छत्तीसगढ़ के हजारों स्कूलों की जिम्मेदारी शिक्षामंत्री के रूप में निभा रहे हैं।