सौरभ सिंह परिहार, रायपुर। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार चिरौंजी के बीज को विकसित करने में सफलता पाई है। इस तरह अब चिरौंजी का पौधा लगाकर अच्छी खासी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। विवि के प्लांट मौलिक्यूलर एंड बॉयोलॉजी एंड बॉयोटेक्नॉलॉजी विभाग ने दो साल के अथक प्रयास के बाद टिश्यू कल्चर से चिरौंजी के 70 से ज्यादा बीज विकसित कर लिए गए हैं।
जो आने वाले दिनों में राज्य के आदिवासियों तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत सरकार ने चिरौंजी के बीज विकसित करने के लिए देश के अनेक कृषि विश्वविद्यालयों को यह प्रोजेक्ट दिया था, लेकिन इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों को छोड़कर किसी भी विवि को इसमें सफलता नहीं मिली ।
चिरौंजी की नहीं होती री-प्लांटिंग
चिरौंजी के पेड़ मुख्यतः जंगलों में पाए जाते हैं। राज्य के 40 प्रतिशत से ज्यादा भूमि वन आच्छादित है। ऐसे में यहां चिरौंजी के पेड़ बहुतायत पाए जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल चिरौंजी उत्पादन में छत्तीसगढ़ की मात्रा 7 प्रतिशत है, लेकिन धीरे-धीरे चिरौंजी के पेड़ों की संख्या घट रही है, क्योंकि लोग गलत तरीके से फल तोड़ते हैं। कोई टहनियां तो कोई पेड़ को ही उखाड़ देते हैं। इस तरह एक पेड़ का जीवन समाप्त हो जाता है। सबसे चिंता की बात यह कि चिरौंजी के पेड़ की कभी री-प्लांटिंग नहीं होती। ऐसे में अब कृषि विवि के वैज्ञानिकों द्वारा टिश्यू कल्चर से विकसित किए गए बीज से चिरौंजी लगाने की उम्मीद राज्य के आदिवासियों में जाग गई है।
चिरौंजी से आर्थिक व स्वास्थ्यवर्धक फायदे
छत्तीसगढ़ के अनेक जंगली क्षेत्रों में आदिवासियों की आय का मुख्य स्रोत चिरौंजी है। इस ड्रायफूड के लिए सरकार द्वारा ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, इसलिए राज्य में छोटे दाने का ही चिरौंजी है। इनकी बाजार दाम 8 से 15 सौ किग्रा है। बाजार में इसकी मांग इतनी ज्यादा है कि व्यापारी आदिवासियों के घर से ही खरीद लेते हैं। इसके फल 8-12 मिलीमीटर के गोलाकार, काले-भूरे बीजयुक्त होते हैं।
फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है, उसे चिरौंजी कहते हैं। यह अत्यंत पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है। चिरौंजी एक मेवा होती है और इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाइयों में डाला जाता है। इसमें प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है।
चिरौंजी बीज को टिश्यू कल्चर से विकसित करने में दो साल लग गए। पहले साल तो केवल चिरौंजी के बड़े दाने से जड़ निकालने में लगा। फिर इसमें न्यूट्रिशयन का ध्यान रखते हुए परखनली ट्यूब में अंकुरण किया गया। वर्तमान में 70 से ज्यादा पौधे विकसित कर ग्रीन हाउस में रखा गया है। मार्च तक फारेस्ट डिपार्टमेंट को दिया जाएगा। - जेनू झा, प्रोजेक्ट इन्वेस्टिगेटर