By Kadir Khan
Edited By: Kadir Khan
Publish Date: Mon, 17 Jan 2022 07:05:00 AM (IST)
Updated Date: Mon, 17 Jan 2022 07:05:14 AM (IST)
रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जिस तरह उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में लोहड़ी मांगने की परंपरा है, बच्चे गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं। दान में रुपये, पैसे, अनाज मिलने के बाद हंसी-खुशी उस परिवार के लिए दुआ करते हैं। उसी तरह छत्तीसगढ़ की संस्कृति में भी पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर दान मांगने की अनोखी परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।
लोहड़ी और छेरछेरा दोनों ही पर्व में कुछ ही दिनों का अंतराल होता है। दोनों ही पर्व का उद्देश्य आमजन में दान देने की भावना को विकसित करना है ताकि द्वार पर मांगने के लिए आए किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ नहीं लौटाया जाए। कुछ न कुछ देकर उसे सम्मानपूर्वक विदा किया जाए।
समूह में शामिल बच्चे हर घर के सामने पहुंचकर ऊंची आवाज में गीत गाते हैं ताकि घर के भीतर रहने वाले मुखिया, महिलाएं समझ जाएं कि छेरछेरा मांगने बच्चे द्वार पर आए हैं। वे अपना काम छोड़कर सबसे पहले कोठार, जहां अनाज रखा होता है, उसमें से धान, चावल, गेहूं एक बर्तन में निकालकर बच्चों की झोली में डाल देते हैं। अनाज न हो तो रुपए, पैसे, मिठाई भी दी जाती है। बच्चे दुआएं देकर अगले घर चले जाते हैं।
काम छोड़ो, पहले दान दो
छत्तीसगढ़ी के प्रसिद्ध साहित्यकार पीसी लाल यादव बताते हैं कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस पर्व पर बच्चे गाते हैं कि छेरी के छेरा, छेर बरतनिन छेरछेरा, माई कोठी के धान ला हेरहेरा, इसका तात्पर्य है कि हे घर की मालकिन अपना सारा कामकाज छोड़छाड़ दो और अपने कोठार में रखे दान में से कुछ अनाज हमें दान में दो। भगवान तुम्हारे घर के अनाज का कोठार हमेशा भरा रखे, कभी खाली न हो। आवाज सुनकर पूरे सम्मान के साथ बच्चों को दान दिया जाता है।
फसल कटाई से जुड़ा है पर्व
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ में धान फसल की कटाई के बाद मनाया जाता है। किसान कुल फसल का आधा हिस्सा बेच देता है, आधे में से एक हिस्सा मजदूरों के लिए रखता है और एक हिस्सा गरीब, जरूरतमंदों को दान देने के लिए अलग से रखा जाता है। मकर संक्राति के आसपास ही पौष पूर्णिमा तिथि पड़ती है। इस दिन दान करने से राजा बलि के समान यश की प्राप्ति होती है।
दान से मिले धान को बेचकर 1938 में रखी थी कांग्रेस भवन की नींव
जिला कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश दुबे बताते हैं कि कांग्रेस भवन बनाने में हर आम आदमी का योगदान हो, इस उद्देश्य को लेकर आजादी से पहले छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेताओं ने छेरछेरा पर्व पर घर-घर जाकर धान का दान मांगा था।
एकत्रित धान को मंडी में बेचकर मिली सात हजार रुपए की धनराशि से गांधी चौक पर 1929 में कांग्रेस भवन की नींव रखी गई थी। लगभग 2018 वर्गफुट जमीन पर निर्मित कांग्रेस भवन का दिसंबर 1939 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उद्घाटन किया था।
दो साल पहले मुख्यमंत्री ने मनाया था उत्सव
दान देने की परंपरा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए दो साल पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दूधाधारी मठ से दान मांगने का अभियान चलाया था। घर-घर जाकर दान मांगा था। पिछले साल कोरोना महामारी के चलते छेरछेरा पर्व को सादगी से मनाया गया था। इस साल भी कोरोना महामारी के नियमों का पालन करते हुए उत्सव का आयोजन नहीं किया जा रहा है।