रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
भागवत शब्द चार अक्षरों से मिलकर बना है। इसमें भ का अर्थ है भक्ति, ग का अर्थ है ज्ञान, व का अर्थ है वैराग्य और त का अर्थ परम तत्व की प्राप्ति है। मतलब जो भक्ति, ज्ञान, वैराग्य को बढ़ाकर परमतत्व की प्राप्ति कराए वही भागवत है। उक्त बातें पुरानी बस्ती स्थित गोपाल मंदिर के 29वें वार्षिकोत्सव पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कथा व्यास महंत गोपालशरण देवाचार्य ने कही। कृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग में भक्तगण 'नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की...' गाते हुए भक्तिभाव से झूम उठे।
महाराजश्री ने कथा में बताया कि त्रेतायुग में भगवान धरती पर श्रीराम के रूप में अवतरित हुए और संसार को रावण के त्रास से मुक्त किया। मनुष्य को चाहिए कि वह भगवान राम के जीवन से आदर्शों की सीख लेकर अनुसरण करें। भगवान चाहते तो संकल्प मात्र से अपनी बाधाएं दूर कर सकते थे, लेकिन अवतार लेकर मनुष्यों को भगवान ने ये दिखाया कि कैसे जीवन की कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। उनका सामना करना चाहिए।
भागवत कथा में महाराज ययाति चंद्रवंशी वंश के बारे में बताया कि ययाति के बड़े पुत्र यदु हुए। उन्हीं के वंश में भगवान श्रीकृष्ण प्रगट हुए। द्वापर युग में भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र में प्रगट हुए। कंस के बचाने के लिए जब वसुदेव कृष्ण को नंदबाबा के घर ले जा रहे थे तब यमुना की बाढ़ में शेषनाग ने उन्हें छाया दी और यमुना ने उनके पांव स्पर्श किए। कृष्ण को नंदबाबा के घर छोड़कर यशोदा मैया की कन्या को लेकर वसुदेव वापस कंस के कारागृह में आ गए। इसके बाद कथा में जैसे ही नंदबाबा के यहां भगवान के प्रगट होने का प्रसंग आया, पूरा आयोजन स्थल भक्तिभाव से झूम उठा।
आज लगेगा 56 भोग
पं. रोहित पांडेय ने बताया कि मंगलवार को कथा में श्रीकृष्ण लीला, ब्रम्हामोह, गिरिराज धरण प्रसंग के बाद भगवान को 56 भोग लगाया जाएगा।