रायपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। देश में भारतीय संस्कृति को बनाए रखने के लिए जन जागरण एवं समाज सुधार के उद्देश्य से बनाई गई झांकी काे देखने जैन समाज के लोग पहुंच रहे हैं। यह झांकी श्री दिगंबर जैन समाज के पर्युषण पर्व पर दिगंबर जैन मंदिर मालवीय रोड में आचार्य विद्यासागर महाराज के आशीर्वाद से लगाई गई है। इस झांकी में विभिन्न अंचलों में चल रहे प्रकल्पों जिसमें प्रतिभास्थली, हथकरघा, गौशाला, पूर्ण आयु अनुशासन को प्रदर्शित किया गया है।
झांकी का शुभारंभ पूर्व मंत्री एवं विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने किया। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री का उद्देश्य देश में आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ जीवन, स्वाबलंबन के माध्यम से जीवन यापन, उत्कृष्ट शिक्षा के माध्यम से संस्कारवान जीवन, गौशाला सेवा के माध्यम से गौ संवर्धन आदि के प्रकल्प को चलाया जाना देश और समाज के कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
दुर्ग के महापौर धीरज बाकलीवाल ने ऐसी झांकी दुर्ग में भी लगाए जाने का आह्वान किया। इस मौके पर छत्तीसगढ़ निर्माण मंडल अध्यक्ष कुलदीप जुनेजा, भाजपा प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने, अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य अनिल जैन, वरिष्ठ समाजसेवी विनोद बड़जात्या, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य प्रदीप जैन (विश्व परिवार), प्रभारी मैनेजिंग ट्रस्टी नरेंद्र जैन, देव कुमार जैन, भरत भोरावत, प्रभात जैन, अजय जैन, पूर्व अध्यक्ष नवीन मोदी आदि मौजूद थे। संयोजक अखिल जैन, रजत जैन, अनमोल जैन, संध्या जैन ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन खुशबू जैन ने किया।
क्रोध करना आत्मा का स्वभाव नहीं
श्रीऋषभदेव मंदिर सदरबाजार में साध्वी शुभंकरा ने कहा कि आत्मा का स्वभाव शांतचित्तता है, क्रोध करना यह आत्मा का स्वभाव नहीं है। यह विभाव दशा हैै। जब हम इस विभाव दशा से स्वभाव दशा में आएंगे तो ही हम आराधन-साधना करते हुए अपने मोक्ष प्राप्ति अर्थात् शाश्वत सुख के चरम लक्ष्य को अर्जित कर पाएंगे।
साध्वीश्री ने कहा कि मन, वचन, काया के द्वारा हमें किसी भी जीव पर हिंसा और दुख नहीं पहुंचाना है। गृहस्थ जीवन यापन करते हुए यदि सूक्ष्म जीवों की हिंसा का पाप अनायास, अनजाने में हो रहा हो तो वह क्रिया पश्चाताप् के भावों से करें।
जब तक सिद्धत्व अवस्था में नहीं आ जाते, तब तक कर्म बंध की श्रृंखला अनवरत चलती ही रहेगी, कोई भी कर्म करें तब उनमें अपने कसायों को मंद रखें। कसाय नहीं होंगे तो अशुभ कर्मों का बंध भी नहीं होगा। जीवन में एक बात का सदैव ध्यान रखें कि यदि दान देकर देने का पश्चाताप् किया तो आने वाले भवों में सब कुछ होते हुए भी आप उसका उपयोग कर नहीं पाएंगे।