
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, रायपुर। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार की बांड नीति के खिलाफ राज्य के डॉक्टर अब कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। करीब 70 विद्यार्थी अधिवक्ताओं से सलाह लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की प्रक्रिया में जुटे हैं। राज्य में मेडिकल शिक्षा पूरी करने के बाद डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य सेवा देनी होती है।
कांग्रेस शासनकाल में वर्ष 2020 में लागू नियम के तहत यदि इस अवधि में कोई छात्र उच्च शिक्षा (पीजी व सुपरस्पेशियलिटी) के लिए चयनित होता है, तो उसे एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के लिए 25-50 लाख रुपये बांड राशि भरनी या इसके बदले में जमीन गिरवी रखनी होती है।
विद्यार्थियों का दावा है कि इससे पहले बांड राशि की शर्त थी, लेकिन जमीन गिरवी रखने का कोई प्रविधान नहीं था। एफिडेविट के माध्यम से प्रवेश हो जाता था। एफिडेविट में यह लिखकर देना होता था कि उच्च शिक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद बची हुई सेवा को पूर्ण करेंगे। बांड राशि अधिक होने की वजह से प्रत्येक साल एक मेडिकल कॉलेज से 30 से ज्यादा ऐसे विद्यार्थी होते हैं, जो अपनी जमीन गिरवी रखकर पढ़ाई करते हैं।
कुछ विद्यार्थी बांड राशि के अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। विद्यार्थी बांड राशि को कम करने व जमीन गिरवी रखने की शर्त को समाप्त करने की मांग को लेकर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, स्वास्थ्य सचिव अमित कटारिया, आयुक्त शिखा राजपूत तिवारी समेत अन्य उच्च अधिकारियों को ज्ञापन सौंपकर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक सिर्फ उन्हें आश्वासन ही मिला है।
अचल संपत्ति (भूमि या भवन) के दस्तावेज जमा करने की दशा में संबंधित जिले के कलेक्टर या राजस्व विभाग के अधिकारी से ऋण पुस्तिका या रजिस्ट्री की मूल प्रति में यह दर्ज कराया जाए कि संबंधित भूखंड या भवन अनुबंधित अभ्यर्थी के अध्ययन अवकाश अवधि पूर्ण करने के पश्चात राज्य शासन के अधीन ग्रामीण सेवा के दो वर्ष पूर्ण करने तक प्रतिभूति के रूप में बंधक रखी जाएगी। इस बाबत संबंधित जिले के कलेक्टर द्वारा प्रमाणीकरण कराते हुए स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग को यह उपलब्ध कराना होगा। अवधि पूर्ण होने तक भूखंड या भवन को विक्रय करने का अधिकार संबंधित व्यक्ति या अभ्यर्थी को नहीं होगा।
विद्यार्थियों का कहना है कि आरटीआई के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा विभाग से बांड राशि के निर्धारण संबंधित (बांड निर्धारण संबंधी आवेदन व आदेश), प्रारूप निर्धारण, समस्त नोटशीट, प्रथम बांड राशि निर्धारण के पश्चात की गई समस्त वृद्धि से संबंधित दस्तावेज आदि की जानकारी मांगी गई थी। हालांकि विभाग की ओर से दिए गए जवाब में निरंक बताया गया।
मध्य प्रदेश : एमबीबीएस और पीजी के बाद एक वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा, दस लाख की बांड राशि।
महाराष्ट्र : एमबीबीएस और पीजी के बाद एक वर्ष ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा, एमबीबीएस के लिए दस और एमडी-एमएस के लिए 40 लाख की बांड राशि।
ओडिशा : एमबीबीएस के बाद बांड का प्रविधान नहीं, एमडी-एमएस के बाद दो वर्ष का बांड और राशि दस लाख।
बांड नीति का अध्ययन कराया जा रहा है। इसमें जो भी विसंगतियां हैं, उन्हें दूर करके चिकित्सा शिक्षा के विद्यार्थियों को राहत दी जाएगी। जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा। - श्याम बिहारी जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री
एमबीबीएस के लिए 25 लाख और पीजी के लिए 50 लाख रुपये के बांड की शर्तें अनुचित, अव्यावहारिक और चिकित्सक समुदाय के हितों के विरुद्ध हैं। इस पर पुनर्विचार कर समाप्त या व्यावहारिक स्तर पर सीमित किया जाए, ताकि भावी चिकित्सक भय या आर्थिक दबाव के बिना निष्ठा से जनसेवा कर सकें। - डॉ. रेशम सिंह, अध्यक्ष, जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन, छत्तीसगढ़
स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद भी अनुबंधित चिकित्सकों का एनओसी वाला काला कानून वापस नहीं हुआ है। हाई कोर्ट में चुनौती देना ही अंतिम विकल्प बचा है, जिसकी तैयारी में विद्यार्थी जुटे हुए हैं। सरकारी व्यवस्था की खामियों का भार विद्यार्थियों पर डालना अन्यायपूर्ण है। - डॉ. हीरा सिंह लोधी, अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ डाक्टर्स फेडरेशन