श्रवण शर्मा, रायपुर। Raipur Column Nagarghadi: डेढ़ साल से कोरोना महामारी की दहशत के बीच जी रहे लोग अब भी सहमे से हैं। उपर से तीसरी लहर का खतरा होने की चेतावनी गाहे-बगाहे डरा रही है। आजकल डरे-सहमे लोग मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा में जाकर यही प्रार्थना कर रहे हैं कि जैसे बुरे दिन पिछले एक-डेढ़ साल में गुजरे हैं, वैसे दिन जिंदगी में कभी दोबारा न आए। प्रशासन ने धर्म स्थलों पर प्रसाद आदि चढ़ाने पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन भक्तों की मान्यता है कि बिना प्रसाद चढ़ाए पूजा सफल नहीं होती।
सो, कहीं 56 भोग लगा तो कहीं खिचड़ी खिलाकर भगवान को प्रसन्न किया गया। एक भक्त ने तो गणपति बप्पा को टोकरी भरभरकर लड्डू चढ़ाया। बड़े नेता भी आए, यह देख लोग कहने से नहीं चूके कि एक प्रभु का दरबार ही ऐसी जगह है, जहां कोई छोटा-बड़ा नहीं, सभी कुछ न कुछ मांगने ही आते हैं।
बलि का बकरा पुलिस
हर व्यक्ति का यह अधिकार है कि वह किसकी पूजा करे, किस धर्म को माने, क्या खाए और क्या पोशाक पहने। इसके विपरीत इन दिनों राज्य में मत बदलने का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले को लेकर पिछले दिनों दो राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता एक-दूसरे के खिलाफ थाने में शिकायतें की। इसी चक्कर में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को बलि का बकरा बनना पड़ा। उनको तबादले का दंश झेलना पड़ा है।
इस मुद्दे पर पर पहली बार भाजपा ने 300 से अधिक थानों में शिकायत की है। हालांकि, अब इस मुद्दे पर क्या होगा, यह तो कुछ दिनों बाद पता चलेगा। लेकिन कुछ धर्म समाज के पदाधिकारी वाकई चिंतित हैं, क्योंकि उनके समाज केसैकड़ों लोगों ने दूसरे धर्म को अपना लिया है। अब उस धर्म से जुड़े पदाधिकारी रणनीति बना रहे कि आखिर समाज से जाने वालों को कैसे रोका जाए, ताकि समाज का आस्तित्व बचा रहे।
आलीशान आश्रम में खुश भी, दुखी भी
शहर में एक आलीशान वृद्धाश्रम खुलने से वे बुजुर्ग खुश हैं, जो पहले से ही जीर्ण-शीर्ण आश्रम में रह रहे थे। अब उन्हें सर्वसुविधायुक्त नया आश्रम मिल गया है। दूसरी ओर वरिष्ठ नागरिकों की संस्था के सदस्य इस बात को लेकर दुखी हैं कि आखिर आश्रम खोलने की नौबत ही क्यों आए। यदि हर बेटा-बहू अपने माता-पिता और सास-ससुर की देखभाल करे, दो वक्त की रोटी, दवा-पानी का इंतजाम कर दे, घर के कोने में ही सहीं, एक छोटी सी जगह बुजुर्गों केलिए सुरक्षित कर दे तो क्या फर्क पड़ जाएगा।
कभी जिन बच्चों को पाल-पोसकर खाने-कमाने लायक बनाया, यदि वही देखभाल नहीं करेंगे तो लानत है ऐसी संतानों पर। शहर केबुजुर्ग, आलीशान आश्रम बनाने वाली संस्था के प्रति आभार जता रहे, लेकिन रूंधे गले से यह भी प्रार्थना कर रहे थे कि भगवान, किसी बुजुर्ग को उसका घर छोड़कर यहां न आना पड़े।
क्षमा मांगने में ही बड़प्पन
जैन धर्म की सबसे अहम शिक्षा अहिंसा परमो धर्म और क्षमापना केसिद्धांत को यदि हर व्यक्ति अपना ले तो उसका परिवार, समाज कभी दुखी नहीं हो सकता। पिछले दिनों ऐसा नजारा दिखाई दिया कि जैन समाज का हर आदमी एक-दूसरे से अपनी सालभर की गई गलतियों केलिए क्षमा मांगता नजर आया। सभी केचेहरों पर असीम संतोष छलक रहा था। कई ऐसे भी थे, जिन्होंने दूसरों की गलतियों को भुलाकर क्षमा कर दिया।
जब ऐसे ही एक शख्स से पूछा गया कि क्या वाकई क्षमा मांगने से कटुता खत्म हो जाती है। उसने जवाब दिया कि अपनी गलतियों के लिए एक बार किसी से क्षमा मांगकर देखो। अपनी गलतियों पर क्षमा मांगना आसान नहीं है, इसकेलिए मन में क्षमाभाव होना चाहिए। क्षमा मांगने वाला छोटा नहीं हो जाता, बल्कि यह उसका बड़प्पन होता है। क्षमा मांगकर और दूसरे को क्षमा करकेहम अपना जीवन सुधार सकते हैं।