रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
राजधानी स्थित गुढ़ियारी पड़ाव का इतिहास काफी पुराना है। पड़ोसी राज्य के व्यापारी बैलगाड़ी से आकर यहां पर कपास बेचने का काम करते थे। गुढ़ियारी पड़ाव की सबसे खास बात है कि यहां पर करीब दो सौ साल पुरानी हनुमान जी की स्वंभू मूर्ति है। इतिहासकारों का मानना है कि पड़ाव पर स्थित राम मंदिर को देखने के लिए हनुमान ने अपनी नजर को तिरछी कर दी थी। इसलिए उनकी नजर तिरछी हो गई है। मंदिर के पास मच्छी नामक तालाब है। भारी संख्या में कारोबारी यहां आकर व्यापार करते थे, इसलिए इसका नाम गुढ़ियारी पड़ाव पड़ा।
वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. रामकुमार बेहार ने बताया कि गुढ़ियारी पड़ाव पहले मैदान हुआ करता था। दूसरे राज्यों के व्यापारी व्यापार करने के सिलसिले में बाहर से आया करते थे। व्यापारी महीने यहां रुककर कपास बेचने का काम करते थे। पास में तालाब होने की वजह से व्यापारियों को पानी के लिए भी दूर नहीं जाना पड़ता था। उन्होंने बताया कि गुढ़ियारी स्थित हनुमान मंदिर अपने आप में विख्यात है। मंदिर को शक्ति पुत्र के नाम से जाना जाता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में जो भी अपनी मन्नात लेकर आता है वह खाली हाथ वापस लौटकर नहीं जाता है। वह इसे करीब 200 साल से ज्यादा पुराना मंदिर बता रहे हैं।
स्वयं निकली है मूर्ति
वरिष्ठ इतिहासकारों का मानना है कि हनुमान मंदिर के अंदर मूर्ति को विस्थापित नहीं की गई है। यह मूर्ति स्वयंभू है। हनुमान की मूर्ति दक्षिणमुखी है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए हनुमान ने अपना सिर दक्षिण दिशा की तरफ घुमा लिया था। मंदिर परिसर में भगवान राम- जानकी, लक्ष्मण के अलावा राधा-कृष्ण और शिवलिंग भी है।
यहां नहीं जलाई जाती अगरबत्ती
हनुमान मंदिर वर्तमान इंदौर के जैन मंदिर की याद दिलाता है। मंदिर में दूर दराज से लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की खासियत है कि प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए इसमें अगरबत्ती नहीं जलाई जाती। वर्तमान में मंदिर को कांच से सजाया गया है। भक्तों का ऐसा मानना है कि मंदिर में आने के बाद सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं। इसलिए सुबह शाम मंदिर में भीड़ लगी रहती है। इस मंदिर में सुबह-शाम होने वाली आरती में दक्षिण भारतीय लोगों की भीड़ अधिक देखने को मिलती है।