कहानी - गुरु और शिष्य की
संदर्भ - चातुर्मास में गुरु महिमा
संदेश - जीवन संवारते हैं
रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
जिनके चरणों में बैठने से तुम्हे शांति, तृप्ति और आनंद मिले, जिसके चरणों में बैठने से तुम्हारे विकार शांत हो वही, गुरु है। जिसके चरणों में बैठने से तुम्हारा ध्यान लगे, तुम्हारे भीतर आनंद संगीत बजने लगे, ज्ञान का आलोक फैलने लगे, तुम्हारे सारे पाप, सारे संताप, सारी पीड़ा, सारे क्लेश कटने लगे। जिसके चरणों में बैठकर तुम यह ज्ञान प्राप्त कर सको कि मैं कौन हूं, मैं किसलिए हूं, मैं कहां से आया हूं और मुझे कहां जाना है, वही गुरु है। गुरु तुम पर बार-बार चोट करके जागने की सूचना देता है। गुरु ऐसे अलार्म हैं, जो कहते हैं उठो, बहुत सो लिया। यह संदेश संत रविशंकर 'रावतपुरा सरकार' ने दिया।
इस जगत में जितने भी संबंध हैं, सब स्वार्थ के हैं, बस एक ही संबंध गुरु और शिष्य का ऐसा है जो एकदम निःस्वार्थ है। इसमें शिष्य की कल्याण की भावना है, मंगल की भावना है क्योंकि शिष्य की सारी धारणा ही भगवान की कृपा से ही टिकी है। क्या सीधे-सीधे परमात्मा मिल जाए तो तुम पहचान सकोगे। कैसे पहचानोगे, तुम्हारे पास कसौटी क्या है। यह उपाय है कि वह सद्गुरु के रूप में आता है और तुम्हें अपने प्रेम से सराबोर कर देता है। अपनी करुणा से भिगो देता है। वह तुम्हारे दोषों को नहीं देखता, तुम्हारे दुर्गुणों को नहीं देखता वह तो केवल तुम्हें अपने प्यार से पवित्र कर देता है।
पहले तो सद्गुरु मिलना कठिन है। कहां हैं ऐसे सद्गुरु जिन्होंने सत्य पा लिया है। सद्गुरु का मिलना ऐसे ही है, जैसे भगवान का मिलना। लेकिन जो खोजते हैं, उन्हें मिलते हैं। तुम थक मत जाना अपनी खोज जारी रखना। सद्गुरु को मानो, सद्गुरु के उपदेशों मानो एवं उनकी आज्ञा का पालन करो तभी कल्याण होगा।