रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
भारत का हृदय और धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ अपनी भाषा, संस्कृति, प्राचीन कला, सभ्यता इतिहास और पुरातत्व से काफी संपन्न है। छत्तीसगढ़ बने 20 साल हो गए हैं फिर भी प्रदेश और देश में छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति का कोई खास प्रभाव नहीं है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा के लिए बात होती है, बाद में लोग भूल जाते हैं। प्रदेश में एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी जिंदगी को छत्तीसगढ़ भाषा संस्कृति को बढ़ाने और उनके प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं भिलाई के कला परंपरा के संपादक और प्रदेश अध्यक्ष डॉ. डीपी देशमुख की। वे पिछले 40 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। उनकी छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति और पुरातत्व आदि पर लगभग 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसमें प्रदेश की भाषा कला, तीज त्योहार, पर्यक स्थल, तिर्थ स्थल आदि का जिक्र है। डॉ. डीपी बताते हैं कि छत्तीसगढ़ भाषा और संस्कृति बहुत ही समृद्घ है। बस इसे छत्तीसगढ़ी लोगों को सहेजने की जरूरत है। और इसका प्रचार-प्रसार करने की आवश्यता है। इसमें सभी नागरिक की भूमिका अहम है। हालांकि मौजूदा सरकार छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति को लेकर काफी सराहनिय कार्य कर रही है।
भाषा, कला और संस्कृति के प्रति ऐसी जुनून कि हमेशा करते हैं काम
छत्तीसगढ़ी भाषा कला और संस्कृति को कैसे प्रदेश के साथ पूरे दुनिया में ख्याति दिलाया जाए। इसको लेकर डॉ. डीपी देशमुख में ऐसा जुनून है कि उन्होंने कला और संस्कृति और कैसे बेहतर किया जाए, इसको लेकर कलाकारों से हमेशा बातचीत करते रहते है और उनके पास करीब 1000 से अधिक कलाकारों का बायोडाटा है, जिससे कला और संस्कृति में क्या है, इसका पता चलता है।