रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
मजाहर, दरगाह और आस्ताना...एक ऐसा पाक-शफ्फाक जगह है, जिसके नाम सुनने से ही रूहानियत भरा सुकून मिलता है। जहां जाने से दिल और दिमाग को अलग सुकून पहुंचता है। यहां लोग केवल मन्नतें मांगने ही नहीं आते हैं। बल्कि अल्लाह का एक बंदा, जिसने अपनी जिंदगी उनके नाम कर दी, उन बुजुर्ग वलीअल्लाह से मिलते हैं। जो सभी के दुख-दर्द और दिल की बातों को जानता है, लेकिन फिर भी लोग अपने हाल-ए-दिल उसे सुनाते हैं। जिसे बोलचाल की भाषा में मन्नतें मांगना कहा जाता है। लेकिन आस्ताने में लेटा फकीर आपके नेक इरादों और दिल की बातों को पहले जान लेता है और उसको पूरा करने में लग जाता है। हालांकि मजारों में लेटे बुजुर्ग की अपनी अपनी करामात (चमत्कार) होती है, जिसके लिए वे प्रसिद्घ होते हैं। रायपुर में भी कई ऐसी मजार हैं, जिनकी अपनी करामात है। आज आपको रायपुर शहर की कुछ ऐसी ही मजारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनमें सभी की एक अलग करामात है, एक अलग कहानी है। जिसमें उनका नाम कैसे पड़ा और वे किसके लिए मशहूर हैं, जिसमें किले वाले बाबा, बंजारी वाले बाबा, अस्पताल वाले बाबा और हांडी वाले बाबा शामिल हैं, जहां हर दिन अकीदतमंदों की हाजिरी लगती है। इनके आस्ताने से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। जहां सभी की नेक मुरादें पूरी होती हैं।
400 साल पुरानी दरगाह, सभी धर्मों के लिए है आस्था का केन्द्र
ब्रह्मपुरी एरिया स्थित हजरत सैय्यद बुरहान वली शाह (किले वाले बाबा) की मजार लगभग 400 साल पुरानी है। यह सभी धर्म के लोगों के लिए आस्था का केन्द्र है, जहां हर दिन सैकड़ों लोग आस्ताने पर हाजिरी लगाकर अपनी मन्नतें मांगते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी लोग मन्नतें मांगने आते हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। चार सौ साल पुरानी दरगाह की एक अलग कहानी है। इसका नाम किले वाले बाबा इसलिए पड़ा कि यह जमीन राजा की हुआ करती थी। पूछने पर मजार के खादिम सैय्यद खुर्शीद ने बताया कि पहले यहां चारों ओर जंगल हुआ करता था और एक तालाब था, जिसको लोगों ने बाद में बूढ़ा तालाब का नाम दिया। यहां की पूरी जमीन रायपुर के राजा, रघु राजा की थी, जिसमें उन्होंने चारों ओर चारदीवारी कराई थी। बाबा बुरहानपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। जब वे रायपुर आए तो यहीं जंगल में रहने लगे और यहीं बसेरा बना लिया। उनके साथ तीन और लोग आए थे, जिनकी मजार भी यहां बनाई गई है। आज भी यह मजार के चारों ओर लगभग 17 एकड़ जमीन है, जो किसी निजी व्यक्ति के हाथों में है। एक बात आपको और भी बता दूं कि इस मजार को स्व. सुकंन्द्र राव नागो राव ने बनवाया, जो एक हिंदू थे। बाबा से उनका लगाव इतना था कि बाद में पूरी मजार अपने बलबूते बनवा दी। आज यहां हर दिन लंगर बंटता हैं, जिस लंगर में इतनी फैज है कि सभी को इससे शिफा मिलती है। किले वाले बाबा को खजाने वाले बाबा भी कहा जाता है, क्योंकि ये खजाने की रखवाली करते थे। आज लोग इससे भी संबंधित मन्नतें मांगते हैं।
यहां हर दिन बंटता है लंगर, खाकर लोग पाते हैं शिफा
हजरत सैय्यद शेर अली आगा (बंजारी वाले बाबा) की मजार काफी पुरानी है। मोतीबाग स्थित यह मजार बंजारी वाले बाबा के नाम से मशहूर है। यहां हर साल इनके उर्से पाक के मौके पर अकीदतमंदों की भीड़ उमड़ पड़ती है। वहीं हर दिन सभी धर्म के लोग यहां हाजिरी लगाते हैं। कहा जाता है कि जो भी लोग यहां अपनी मुरादें लेकर आते हैं, उनकी मुरादें हर हाल में पूरी होती हैं। यहां हर दिन लंगर बंटता है। जिसे खाकर मरीज भी शिफा (निरोग) हो जाते हैं। मजार के खादिम मोहम्मद नईन रिजवी ने बताया कि हजरत सैय्यद शेल अली आगा अफगानिस्तान से कई साल पहले रायपुर आए और बंजारी चौक पर बैठ गए। जहां वे कई साल बैठे रहे। जब वे दुनिया से पर्दा किए तो मोतीबाग में उनकी मजार बनाई गई। मजार 1982 से बनना शुरू हुई और अभी तक जारी है। आगे कुछ ही सालों में काम पूरा हो जाएगा और मजार की भव्य इमारत देखने को मिलेगी।
मरीजों का मर्ज होता है दूर, हर दिन लोगों का लगा रहता है तांता
हजरत सैय्यद बंदे अली रहमतुल्लाह अलेह (अस्पताल वाले बाबा) की मजार घड़ी चौक डीकेएस अस्पताल के पीछे हैं। जो अस्पताल वाले बाबा के नाम से जानी जाती है। इनको अस्पताल वाले बाबा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह अस्पताल के पीछे है, इसलिए इसका नाम पड़ा। वहीं दूसरी ओर यहां जितने भी अकीदतमंद लोग आते हैं, उनको तुरंत शिफा मिलती है। कहा जाता है कि अस्पताल वाले बाबा की करामतों में एक है, जहां मरीजों को तुरंत शिफा मिलती है। दरगाह के खादिम हाजी रमजान अली ने बताया कि पहले इन्हें जेल वाले बाबा के नाम से जानते थे। बाद में अस्पताल वाले बाबा के नाम से मशहूर हुए।
हांडी से करते थे करामात, तभी से नाम पड़ा हांडी वाले बाबा
मौदाहापारा स्थित सैय्यद नईमुद्दीन शाह (हांडी वाले बाबा) का नाम से मशहूर हैं। उनकी करामात हांडी में हुआ करती थी, इसलिए उनका नाम हांडी वाले बाबा पड़ा। दरगाह के खादिम गुलाम जिल्लानी बताते हैं कि बाबा हर दिन शहर का चक्कर लगाया करते थे। वे अपने साथ हांडी लेकर चलते थे। उस हांडी से ही सोरे चमत्कार किया करते थे। अगर रास्ते में चलते-चलते कोई भूखा मिल गया और रोटी मां ली तो वे हांडी से गरम रोटी निकाल दे देते थे। अगर कोई जलेबी मांग लिया तो गरम जलेबी मिल जाती थी। ऐसे ही वे घूम-घूमकर लोगों की जरूरतों की पूर्ति करते थे। तभी से उनका नाम हांडी वाले बाबा पड़ा। आज भी लोग उनके आस्ताने पर आकर जो मांगते हैं, उनको मिलता है, कोई खाली हाथ नहीं जाता।