नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। भारतीय डाक विभाग, जो दशकों से आम आदमी के भरोसे का प्रतीक रहा है। उसने अब अपनी 50 साल से भी अधिक पुरानी प्रतिष्ठित सेवा को समाप्त करने की घोषणा कर दी है। एक सितंबर से नागरिक अपने पार्सल को विश्वसनीय और सस्ती रजिस्ट्री के माध्यम से नहीं भेज पाएंगे। विभाग ने इस सेवा को अपनी महंगी स्पीड पोस्ट सेवा में विलय करने का आदेश जारी कर दिया है, जिससे अब हर पार्सल भेजना नागरिकों की जेब पर भारी पड़ने वाला है।
डाक विभाग के उप महानिदेशक (मेल) दुष्यंत मुदगिल द्वारा देश के सभी पोस्टमास्टरों को भेजे गए पत्र के अनुसार, यह कदम परिचालन दक्षता बढ़ाने और सेवाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए उठाया गया है। विभाग का दावा है कि एक ही तरह की दो सेवाओं (रजिस्ट्री और स्पीड पोस्ट) को चलाने में दोगुने मैनपावर का इस्तेमाल हो रहा था और इस विलय से ट्रैकिंग तंत्र बेहतर होगा और ग्राहकों को अधिक सुविधा मिलेगी।
इस बदलाव का सबसे सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा। अब तक जो 20 ग्राम का पार्सल लगभग 26-27 रुपये में रजिस्ट्री हो जाता था, उसे स्पीड पोस्ट से भेजने के लिए 41 रुपये चुकाने होंगे, जो लगभग 75 प्रतिशत की भारी वृद्धि है। यह बोझ पार्सल के वजन और दूरी के साथ हजारों रुपये तक बढ़ जाएगा, जिससे विभाग को प्रतिदिन करोड़ों की अतिरिक्त आय होगी। अकेले रायपुर में ही रोजाना औसतन 10 हजार से ज्यादा स्पीड पोस्ट बुक होते हैं।
एक ओर जहां डाक विभाग अपनी नीतियों में बड़े बदलाव कर रहा है, वहीं दूसरी ओर विभाग के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं है। डब्ल्यूआरएस डाकघर के पोस्टल असिस्टेंट राजू गजेंद्र ने पोस्टमास्टर ग्रेड में अपनी पदोन्नति लेने से इनकार कर दिया है। यह कोई अकेली घटना नहीं है।
इससे पहले 4 जुलाई को पदोन्नत हुए डेढ़ दर्जन कर्मचारियों में से 14 ने 22 जुलाई को ही प्रमोशन ठुकरा दिया था। बार-बार पदोन्नति ठुकराने की ये घटनाएं विभाग की आंतरिक कार्यप्रणाली और कर्मचारी असंतोष की ओर इशारा कर रही हैं। इसी बीच, सड्डू उप डाकघर को डाउनग्रेड भी कर दिया गया है, जो विभाग के पुनर्गठन और उससे उत्पन्न हो रही बेचैनी को और स्पष्ट करता है।