0 सुप्रीम कोर्ट के 2012 के निर्णय के आधार पर राज्य सरकार ने जारी किया निर्देश
0 कोर्ट ने कहा-किसी का वेतन नियोक्ता और नियुक्त के बीच का मामला
नईदुनिया एक्सक्लूसिव
रायपुर । नईदुनिया प्रतिनिधि
अगर व्यापक लोकहित की बात न हो तो सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत किसी अफसर की संपत्ति का विवरण देना जरूरी नहीं है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2012 के एक निर्णय की प्रति हाल ही में सभी विभागों को भेजी है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि किसी शासकीय सेवक की निजी जानकारी देने के लिए यह जरूरी है कि केंद्रीय जन सूचना अधिकारी या राज्य जन सूचना अधिकारी या अपीलीय प्राधिकारी संतुष्ट हों कि उक्त जानकारी से कोई जनहित का मामला जुड़ा है। ऐसा न हो तो किसी की तनख्वाह के ब्यौरे, बैंक खाते की जानकारी जैसी सूचनाएं नहीं दी जा सकतीं। याचिकाकर्ता ऐसी सूचनाओं के लिए अधिकार पूर्वक दावा नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2012 में आरटीआई एक्टिविस्ट गिरीश चंद्र देशपांडे बनाम केंद्रीय सूचना आयोग एवं अन्य के मामले में निर्णय देते हुए कहा है कि आरटीआई के लक्ष्यों और उद्देश्यों पर विस्तार से ध्यान दिया जाना चाहिए। इस मामले में याचिकाकर्ता ने क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त को आरटीआई में आवेदन देकर अकोला उपक्षेत्रीय कार्यालय में पदस्थ प्रवर्तन अधिकारी एबी लुटे के संबंध में 15 बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त नागपुर ने इन प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार कर दिया। कहा मांगी गई जानकारी व्यक्तिगत है और लोक गतिविधि या लोक हित का मामला नहीं है। आरटीआई अधिनियम 2005 के अनुभाग 8 के तहत ऐसी सूचना नहीं दी जा सकती। याचिकाकर्ता ने इसके साथ ही लुटे की पदोन्नति आदेश की प्रति, स्थानांतरण आदेश की प्रति और वेतन संबंधी विवरण, उन्हें जारी किए गए कारण बताओ नोटिस, आक्षेप की जानकारी, आस्तियों, परिसंपत्तियों के रिटर्न की जानकारी, निवेश का ब्यौरा, स्वीकृत किए गए उपहारों का मूल्य निर्धारण का विवरण,लुटे के खिलाफ जेएफएमसी अकोला में लंबित आपराधिक प्रकरण, अदालत में प्रस्तुत होने के लिए दफ्तर से क्लेम किए गए टीए, डीए बिल की प्रति, चार्जशीट की प्रति, लुटे के विरूद्घ चल रही जांच कार्रवाई की प्रमाणित प्रति, उनके बच्चों के खाते की जानकारी, बच्चों के विवाह में खर्च की जानकारी आदि की मांग की थी। उसे सिर्फ यह जानकारी दी गई कि लुटे ने कोर्ट केस में उपस्थित होने के एवज में कोई टीए,डीए बिल नहीं लगाया है। बाकी जानकारी देने से इंकार किया गया। इसपर याचिकाकर्ता ने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की। आयोग ने चार सप्ताह में स्थानांतरण का विवरण देने को कहा। बाकी जानकारियां देने से इंकार कर दिया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता गिरीश ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर की थी।
कोर्ट ने कहा-निजी जानकारी देना जरूरी नहीं-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-याचिकाकर्ता द्वारा मांगे गए सभी मेमो, कारण बताओ नोटिस, चल अचल संपत्ति का विवरण, बै।क और वित्तीय संस्थाओं में किए गए निवेश का विवरण, उधार व लेन देन संबंधी विवरण, पुत्र के विवाह में हुआ व्यय आदि की जानकारी संबंधित अधिकारी के आयकर रिटर्न में दर्ज है। यह जानकारी आरटीआई अधिनियम के तहत निजी जानकारी के रूप में परिभाषित की गई है। ऐसी सूचना जिसका प्रकट होना व्यापक लोकहित गतिविधि से संबंधित हो, जिसके प्रकटन से किसी व्यक्ति के जीवन या उसकी सुरक्षा को कोई खतरा न हो वह आरटीआई अधिनियम के अनुभाग 8 के खंड (जे) के अंतर्गत प्रकटीकरण से मुक्त हैं। याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी वास्तविक लोकहित में नहीं है बल्कि व्यक्तिगत जानकारी का अनुचित आक्रमण है।
06 अनिल 02
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