
राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, रायपुर। Jhiram Ghati Kand: नक्सल मामले में छत्तीसगढ़ में अब तक गठित छह न्यायिक जांच आयोग में से पांच की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी जा चुकी है। इनमें केवल झीरम घाटी हमला कांड की रिपोर्ट अटकी हुई है। हालांकि झीरम घाटी हमले की जांच कर रहे न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने छह अक्टूबर 2021 में तात्कालिक राज्यपाल अनुसुईया उइके को 4,184 पेज की रिपोर्ट सौंपी थी।
यह रिपोर्ट 10 खंडों में विभाजित दी मगर कांग्रेस की भूपेश सरकार ने आयोग की रिपोर्ट को अधूरी बताते हुए इसे मानने से इंकार कर दिया था। इसके बाद न्यायिक जांच आयोग में पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश अग्रिहोत्री को आयोग का अध्यक्ष और न्यायमूर्ति जी. मिन्हाजुद्दीन को आयोग का सदस्य बनाया गया। भूपेश सरकार ने तीन नए बिंदुओं को जोड़ते हुए आयोग को छह महीने में जांच पूरी कर आयोग को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिया।.jpg)
इसके बाद भी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो पाई। मामले में उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री विजय शर्मा ने दावा किया है कि आने वाले समय में विधानसभा के पटल पर रिपोर्ट रखी जाएगी। बतादें प्रदेश में 11 वर्ष पहले 25 मई 2013 को झीरम नक्सली कांड में कांग्रेस के नेताओं की एक पूरी पीढ़ी खत्म हो गई थी। 32 लोग मारे गए थे। इस मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग गठित किया गया।
इसके अलावा अन्य नक्सली घटनाएं काफी चर्चित रहीं है। इनमें सारकेगुड़ा में पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई कथित मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट जस्टिस अग्रवाल आयोग द्वारा पिछले साल 17 अक्टूबर 2019 को प्रदेश शासन को सौंपी जा चुकी है।
साथ ही श्यामगिरी नक्सल कांड, ताड़मेटला आगजनी कांड, मदनवाड़ा कांड और एड़समेटा कांड की न्यायिक आयोग जांच रिपोर्ट भी सरकार को दी जा चुकी है। इन घटनाओं में सुरक्षा बल के जवानों, जनप्रतिनिधियों से लेकर आम जन तक बलिदान हुए हैं। सबसे चर्चित घटना छह अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला की है, जहां 76 जवानों की शहादत हुई थी।.jpg)
ये रहे चर्चित कांड
सारकेगुड़ा कांड: बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में 28 जून 2012 को हुई मुठभेड़ में मारे गए 17 लोगों के मामले में जस्टिस विजय कुमार अग्रवाल ने जांच की थी। उन्होंने रिपोर्ट में बताया था कि मारे गए लोग नक्सली नहीं थे। न ही गांववालों की तरफ से किसी तरह की गोलीबारी की गई थी। मारे गए लोग नक्सली थे, इस संबंध में सुरक्षाबल कोई प्रमाण नहीं दे पाए थे।
ताड़मेटला आगजनी कांड: 11 से 16 मार्च 2011 के बीच सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर में 259 वनवासियों के मकानों में आगजनी की घटना की जांच के लिए सेवानिवृत न्यायमूर्ति टीपी शर्मा की अध्यक्षता में विशेष न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था। सुरक्षा बलों का दावा रहा है कि आगजनी नक्सलियों की ओर से की गई थी, वहीं नक्सलियों ने इसके लिए सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहराया था। इस घटना की सीबीआइ जांच भी हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार ताड़मेटला मोरपल्ली व तिम्मापुरम में ग्रामीणों के घरों को जलाने की घटना को स्वीकार किया गया है, लेकिन यह टिप्पणी भी की गई कि मकान किसके द्वारा जलाए गए, इस संबंध में कोई साक्ष्य नहीं हैं।
एड़समेटा कांड: 17-18 मई 2013 को बीजापुर जिले के एड़समेटा में पुलिस और नक्सलियों के बीच कथित मुठभेड़ की जांच जस्टिस वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई थी। इसके लिए गठित विशेष न्यायिक जांच आयोग ने इस घटना में मारे गए आठ लोगों की हत्या की जांच की थी। इनमें तीन नाबालिग थे। सूत्रों के अनुसार जांच में ये तथ्य सामने आए थे कि घटना में कोई नक्सली नहीं थे, जवानों ने घबराहट में गोलियां चलाई थी। मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले की सीबीआइ को भी जांच की जिम्मेदारी मिली।.jpg)
श्यामगिरी नक्सल कांड: नौ अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा जिले के श्यामगिरी में नक्सलियों द्वारा तत्कालीन भाजपा विधायक भीमा मंडावी की वाहन को बम ब्लास्ट कर उड़ा दिया गया था। इस घटना में भीमा मंडावी व सुरक्षा बल के जवानों को मिलाकर पांच लोग मारे गए थे। इस घटना की जांच जस्टिस एसके अग्निहोत्री की अध्यक्षता में गठित विशेष न्यायिक जांच आयोग ने जांच की थी। सूत्रों के अनुसार आयोग ने अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में भीमा मंडावी की मौत की साजिश से इनकार किया था। इसमें हंगामा भी हुआ था।
मदनवाड़ा कांड न्यायिक जांच: 12 जुलाई 2009 को राजनांदगांव के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनवाड़ा और आसपास के इलाकों में, तीन अलग-अलग नक्सली हमलों में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे सहित 29 पुलिस कर्मी बलिदान हुए थे। सेवानिवृत्त जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने मदनवाड़ा कांड न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट मुख्य सचिव अमिताभ जैन को सौंपी थी। सूत्रों के अनुसार इस घटना में कुछ पुलिस अधिकारी की भूमिका संदिग्ध बताई गई थी।