श्रवण शर्मा, रायपुर। Vastu Of Temple: छत्तीसगढ़ की राजधानी के हृदय स्थल जयस्तंभ चौक से एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ब्राह्मण पारा वार्ड में 600 साल पहले बनाया गया कंकाली मंदिर और मंदिर के ठीक नीचे स्थित तालाब वास्तु के अनुरूप है। वास्तु के प्रभाव से मंदिर और तालाब दोनों ही प्रसिद्ध हैं। तालाब के पानी में औषधीय गुण होने की मान्यता है, जिसके चलते भक्तगण यहां स्नान करते हैं, ताकि उनके चर्मरोग ठीक हो जाएं। मुख्य मंदिर पश्चिम दिशा में और द्वार एवं माता की प्रतिमा का मुख पूर्व दिशा में है, जिसे वास्तु के अनुसार अति शुभदायी माना जाता है।
नागा साधुओं ने कराया था निर्माण
भारत में वास्तु शास्त्र का प्रचलन हजारों वर्ष से है। ऋषि मुनि और राजा महाराजा जब भी भवन, तालाब मंदिरों का निर्माण कराते थे, तो उस समय वास्तु शास्त्र के जानकार ऋषि मुनियों से पूरे निर्माण की चर्चा करके फिर निर्माण प्रारंभ करते थे। ऐसा ही मंदिर 600 साल पहले तंत्र-मंत्र करने वाले नागा साधुओं ने प्राकृतिक रूप से एक बहुत बड़े गड्ढे को तालाब का रूप देकर इसके बगल में स्थित छोटी सी पहाड़ी पर मंदिर का निर्माण करवाया था।
समय के साथ यह पहाड़ी समतल सड़क का रूप ले चुकी है और चारों तरफ घना इलाका बस चुका है। राजधानी के वास्तु सलाहकार ज्योतिषाचार्य देवनारायण शर्मा बताते हैं कि मंदिर की बनावट पूरी तरह से वास्तु के नियमों के अनुसार की गई है। कंकाली माता का मुख्य मंदिर पश्चिम दिशा में स्थित है और माता का मुख पूर्व दिशा में है।
मंदिर के चारों दिशाओं में सड़क है। मंदिर के पूर्व और ईशान कोण में बहुत बड़ा और गहरा तालाब है, जो वास्तु शास्त्र के अनुकूल अत्यंत शुभदायक है। ऐसा ही वास्तु तिरुपति बालाजी मंदिर में हैं, जहां मंदिर के चारों ओर सड़क और ईशान कोण में तालाब है।
यह है खासियत
मंदिर की पश्चिम दिशा की सड़क, पूर्व दिशा की सड़क से 10 फीट ऊंची है। मंदिर परिसर में भूखंड का ढाल पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर है। मुख्य मंदिर से 50 फीट नीचे तालाब के अंदर भगवान शिवजी का लिंग है, जो तालाब के बीचों बीच है। तालाब का पानी कभी नहीं सूखता, पूरे साल भर मंदिर पानी में डूबा रहता है। भगवान शिवजी की पूजा जलाभिषेक से की जाती है, लेकिन यहां पर भगवान स्वयं जलसमाधि लिए हुए हैं।
यहां धरती से पानी की धारा फूटती है, कई बार तालाब के पानी को निकाल कर भगवान के मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए दोबारा खुलवाने की कोशिश की गई, लेकिन मंदिर का पानी नहीं सूखा। शिव मंदिर 25 फीट ऊंचा है, और 20 फीट हमेशा पानी में डूबा रहता है, केवल मंदिर का गुंबद चार-पांच फीट ही दिखाई देता है। सदियों से कंकाली माता की पूजा भगवान शिव से पहले की जाती है। इसके बाद ही तालाब के ऊपर से ही भगवान शिव की आराधना की जाती है।
भवन, निर्माण में इन बातों का रखें ध्यान
यदि आप नया निर्माण करने जा रहे हैं, तो वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करके सुख ,समृद्धि और शांति प्राप्त की जा सकती है। भवन निर्माण करते समय उत्तर दिशा में दक्षिण दिशा से ज्यादा खुली जगह छोड़नी चाहिए। इसी तरह पूर्व में पश्चिम से ज़्यादा खुली जगह छोड़नी चाहिए। मकान की ऊंचाई दक्षिण और पश्चिम में ज्यादा होनी चाहिए और छत के ऊपर नैऋत्य कोण (दक्षिण पश्चिम) में सबसे ऊंचा निर्माण करें।