
रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल अंतर्गत संचालित एडवांस कॉर्डियक इंस्टीट्यूट के कॉर्डियोलॉजी विभाग ने दिल की धड़कनों की अनियमित गति से भविष्य में कभी भी हार्ट फेल्योर का शिकार होने वाले 29 साल के एक मरीज की जान बचा ली। रामकुमार (बदला हुआ नाम) चलने में हाफ जाता था। 10 मीटर भी चलना मुश्किल हो रहा था, हल्का-भारी सामान उठाना तो दूर की बात थी। पेशे से ड्राइवर रामकुमार के लिए इस बीमारी से उबरना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि परिवार उस पर ही आश्रित है।
पत्नी, तीन छोटे बच्चे और माता-पिता। संजू एसीआइ ओपीडी पहुंचा। कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने जांच की। तमाम रिपोर्ट के बाद यह डायग्नोस हो गया कि लेफ्ट-राइट चैंबर एक साथ नहीं धड़क रहे हैं। हार्ट सामान्य ढंग से पंप नहीं कर रहा है, खून सप्लाई अनियमित हो गया है।
डॉ. श्रीवास्तव ने बगैर समय गंवाए तय किया कि पेसमेकर लगाना होगा। कॉर्डियक रिसिंक्रोनाइजेशन थैरेपी (सीआरटी) प्लान की गई। इसमें पेसमेकर की एक लीड को राइट एट्रियम, दूसरी राइट वेंट्रीकल और तीसरी को लेफ्ट वेंट्रीकल में सेट किया गया। चार घंटे चली मैराथन कॉर्डियक प्रोसिजर के बाद रामकुमार आज पूरी तरह से फिट है। धड़कन नियंत्रित है। वह नियमित दिनचर्या के काम के साथ ड्राइवरी भी कर सकता है।
यह है हार्ट का काम
हार्ट का राइट चैंबर खून को रिसीव करता है, फिर उसे अपने नीचे के चैंबर में भेजता है। वहां पर खून ऑक्सीनाइज्ड होता है। वहां से लेफ्ट चैंबर के ऊपरी भाग में जाता है। वहां से फिल्टर होकर लेफ्ट के नीचे चैंबर के जरिए पूरी शरीर में सप्लाई होता है।
170 मिली सेकंड पहुंच गई थी धड़कन
डॉ. श्रीवास्तव के मुताबिक धड़कन का हार्ट में संचार होने का समय सामान्यतः 80 से 110 मिली सेकंड होता है, मगर रामकुमार के दिल में धड़कन का संचार 170 मिली सेकंड की दर से हो रहा था। यह सामान्य से 70 मिली सेकंड अधिक रहा। यही हार्ट फेल्योर का कारण बनता।
क्या होता है पेसमेकर
पेसमेकर जेब घड़ी के आकार का उपकरण होता है। इसके दो हिस्से होते हैं, पहला बैटरी (बॉक्स) जहां से करंट निकलता है। दूसरा वह तार या लीड जो करंट को दिल तक पहुंचता है। लीड में सेंसर लगे होते हैं, जो दिल के करंट की गडबड़ी को सेंस कर लेते हैं। इसकी सूचना बैटरी को भेजते हैं, फिर बैटरी या तो अपना करंट दिल तक भेजता है या फिर आवश्यकता न महसूस हो तो उसे रोक भी लेता है। ये सारी गतिविधि पेसमेकर खुद-ब-खुद करता है। यह प्रोग्रामिंग ऑपरेशन के दौरान ही सेट कर दिया जाता है जो कि करंट की गति प्रति मिनट कितनी होगी। इससे हृदय की धड़कन सामान्य बनी रहती है।
निजी अस्पताल में खर्च पांच लाख तक
निजी अस्पताल में पेसमेकर इंप्लांट का खर्च पांच लाख रुपये से भी अधिक है, लेकिन एसीआई में मरीज का आयुष्मान भारत के कार्ड से मुफ्त उपचार हो गया। डिवाइज की कीमत 3.50 लाख रुपये बताई गई है।