राज्य ब्यूरो, नईदुनिया,रायपुर: छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा जिले से एक बार फिर बहादुर जवानों का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रोशन हुआ है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर घोषित राष्ट्रपति वीरता पदक में जिले के नौ पुलिस अफसर और जवानों को यह सम्मान मिलेगा। खास बात यह है कि इनमें पूर्व नक्सली रह चुके और अब दंतेवाड़ा में निरीक्षक पद पर कार्यरत संजय पोटाम को तीसरी बार यह वीरता पदक दिया जा रहा है।
बता दें कि संजय पोटाम ने माओवाद की राह छोड़कर मुख्यधारा से जुड़ने के बाद पुलिस विभाग में शामिल होकर माओवादियों के खिलाफ कई सफल ऑपरेशन में हिस्सा लिया। बस्तर की सुरक्षा का जुनून और इसके लिए किए गए काम के कारण ही संजय पोटाम उर्फ बदरू को न सिर्फ कई इनाम मिले हैं, बल्कि उन्हें सरकार ने गोपनीय सैनिक से पुलिस का थ्री स्टार आफिसर बना दिया है।
संजय की उपलब्धियों के कारण उन्हें अलग-अलग चरणों में आउट आफ टर्न प्रमोशन दिया गया। संजय वर्तमान में घोर नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा में डीआरजी का नेतृत्व कर रहे हैं।
उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त अपने नाम करने वाले संजय पोटाम खुद कभी सरकार और सिस्टम के खिलाफ हथियार उठाकर हल्ला बोलते थे। संजय पहले माओवादी संगठन में कमांडर रह चुके हैं। अब उनकी बंदूक माओवादियों के खिलाफ गरजती है और उन्हें मौत की नींद सुलाती हैै। वह माओवादियों के खिलाफ बड़े और सफल अभियानों के रणनीतिकार, मददगार और सूत्रधार रहे हैं।
बस्तर में माओवादियों के आत्मसमर्पण और उसके बाद पुलिस में भर्ती होने की तो कई कहानियां हैं,लेकिन ऐसे बिरले मामले ही हैं, जिसमें कोई खूंखार माओवादी रहा शख्स अब पुलिस का कामयाब अफसर हो। संजय पोटाम उन्हीं बिरले लोगों में से एक हैं। मूलत: बीजापुर जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के पुसनार गांव के रहने वाले संजय के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि संजय पोटाम की मदद से माओवादियों के खिलाफ कई बड़े ऑपरेशन में सफलता मिली है।
संजय पोटाम साल 2006 में वे माओवाद संगठन से जुड़े। कुछ महीनों में ही एलओएस (लोकल आर्गनाइजेशन स्क्वायड) का डिप्टी कमांडर बना दिया गया। इसके बाद साल 2008 में माओवादियों के मलगेर एरिया का एलओएस कमांडर के लिए उन्हें प्रमोट कर दिया गया। साल 2010 में एरिया कमेटी सचिव बना दिया गया। फिर साल 2012 में दरभा डिविजनल कमेटी का सदस्य बनाया गया।
जनवरी 2013 में संजय ने माओवाद संगठन छोड़ दिया। संजय ने बताया कि माओवादियों के प्लाटून टीम का हिस्सा नहीं था, इसलिए पुलिस से कम मुठभेड़ ही हुई,फिर भी साल 2006 से 2012 के बीच अलग-अलग बार पुलिस ने उनकी टीम पर हमला किया था। एक मुठभेड़ में दो जवान भी मारे गए थे।
संजय ने बताया कि माओवादी संगठन छोड़ने के बाद वे अपने गांव में ही रहने लगे थे,एक दिन अचानक माओवादी पहुंचे और उन्हें पकड़ लिया। गांव में ही जनअदालत लगाई गई, जिसमें मुझे जान से मारने या फिर हाथ पैर तोड़कर छोड़ने की बात माओवादियों ने कही, लेकिन गांव वालों ने विरोध किया तो मुझे छोड़ दिया गया। इसके बाद मैं दंतेवाड़ा आकर पुलिस अधिकारियों के समक्ष सरेंडर किया। मैं सिविल विभाग में काम करना चाहता था, लेकिन एक दिन माओवादियो ने मेरी हत्या करने के लिए पर्चा फेंका, इसके बाद मैं पुलिस में भर्ती हो गया।
संजय बताते हैं कि पहले मुझे गोपनीय सैनिक बनाया गया। मेरे इनपुट पर एक मुठभेड़ में पुलिस को सफलता मिली,इसके बाद मुझे आरक्षक बनाया गया। फिर एक के बाद एक मुठभेड़ में पुलिस को सफलता मिली और मुझे आरक्षक से हवलदार होते हुए इंस्पेक्टर तक प्रमोशन मिला। संजय कहते हैं कि उन्होंने कक्षा आठवीं तक की पढ़ाई की थी। पुलिस में भर्ती होने के बाद ओपन परीक्षा प्रणाली से दसवीं की परीक्षा पास की। अब भी वे आगे की पढ़ाई कर रहे हैं।
कबीरधाम जिले में पदस्थ डीएसपी अंजू कुमारी को भी वीरता पदक से नवाजा जाएगा। उन्होंने माओवादियों के खिलाफ कई मोर्चों पर नेतृत्व करते हुए उन्हें ढेर किया।
18 दिसंबर 2021 को दंतेवाड़ा के थाना अरनपुर के पोटाली और सुकमा गोंडेरास के जंगल में दरभा डिवीजन के 50-60 सशस्त्र माओवादियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी। संयुक्त माओवादी विरोधी अभियान पर डीएसपी अंजू कुमारी के नेतृत्व में पोटाली मिच्चीपारा के बीच पुलिस और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हो गई,जिसमें अदम्य साहस एवं वीरता के साथ जवाबी कार्रवाई करते हुए दो सशस्त्र माओवादियों को मार गिराया था, अंजू कुमारी साल 2021 से दंतेवाड़ा में पदस्थ रही हैं।
राष्ट्रपति वीरता पदक पाने वाले अन्य अफसर-कर्मियों में उप निरीक्षक चैतराम गुरूपंच, हेड कांस्टेबल हेमला नंदू, प्यारस मिंज, कमलेश मरकाम, कांस्टेबल मनोज पुनेम और मरणोपरांत शहीद प्रधान आरक्षक बुधराम कोरसा का नाम भी शामिल है।