रायपुर। निप्र
गुण व योग्यता का समर्पण उसका उपयोग यदि भगवान के लिए हो रहा है तभी उसकी सार्थकता है, अन्यथा वह केवल व्यर्थ ही होने वाला है। गुण और दोष एक ही तत्व है। दोष का अपना कोई आस्तित्व नहीं होता। ये बातें रामकिंकर प्रवचन माला के अंतर्गत प्रवचन देने ऋ षिकेश से आए संत मैथिलीशरण महाराज ने कही।
महामाया मंदिर सभा भवन में आयोजित प्रवचन में महाराज ने कहा कि योग्यता में कर्ण, अर्जुन से कहीं कम नहीं था। अपनी योग्यता का समर्पण मित्र मोह में आकर दुर्योधन के चरणों में समर्पित कर दिया। यह जानते हुए भी कि दुर्योधन नैतिक रूप से गलत है। इसके विपरीत अर्जुन ने अपनी योग्यता भगवान के चरणों में समर्पित की और महान हो गया। वास्तव में हमें अपने जीवन में गुणों और योग्यता का उपयोग कैसे करना चाहिए और कहां करना चाहिए। यह इस दृष्टांत से सीखने को मिलता है। हम अपने गुणों का उपयोग सही स्थान पर ना करके गलत स्थान पर करते हैं और यही हमारे जीवन की भूल है।
भाईजी ने कहा कि मानवीय व्यवहार ईश्वरीय व्यवहार को खत्म करने पर तुला है। यह कुछ समय तो ठीक चलेगा। सम्मान भी दिलाएगा लेकिन उसका आधार कुछ नहीं होगा। जो वेदों से रहित होंगे तो उनमें अवगुण का आना कोई नई बात नहीं है। वेद वफादार भी है, ईमानदार भी है और समझदार भी है।
जीवन में संतुलन बनाकर चलें। अपनी विद्वता का प्रदर्शन दूसरों को नीचा दिखाने ना करें। इसका उपयोग परमार्थ के कार्यों में होना चाहिए। अध्यात्म से ही विज्ञान का जन्म होता है। गुरु अपने शिष्यों को भगवान से जोड़ता है। रात और दिन में जो अंतर है वही जनरेशन गेप में है। संबंधों के अनुरूप जीवन में व्यवहार करने से जनरेशन गेप खत्म हो जाएगा।
गांठ का बांधना आवश्यक है। विवाह में भी गांठ बांधी जाती है, फिर उसे खोला जाता है। गांठ का तार्किक अर्थ जीवन की समस्याओं से होता है। इसे समझदारी और युक्ति के साथ सुलझाना होता है।
22 फरवरी, श्रवण शर्मा, 07
समय - 10.40 बजे