रायपुर। लोकसभा की आचार संहिता लगने से ठीक पहले उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा से लेकर दक्षिण में स्थित बैलाडीला तक आदिवासियों के आंदोलन हुए। आदिवासी इस बात से आंदोलित हैं कि राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद भी पेसा कानून (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) और पांचवी अनुसूची इलाकों में ग्राम सभाओं को मिले अधिकारों का पालन नहीं किया जा रहा है। इन आंदोलनों पर राज्य की कांग्रेस सरकार खामोश ही रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इन मुद्दों पर आदिवासी राजनीतिक दलों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
11 में से करीब सात सीटों पर असर
छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है। यहां 33 फीसद से ज्यादा आदिवासी हैं। राज्य की 11 लोकसभा सीटों में से चार आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि कम से कम तीन और सीटों पर भी उनका प्रभाव है। ऐसे में आदिवासी मुद्दों की अनदेखी करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं होगा। सर्व आदिवासी समाज ने विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारने की बात कही थी। प्रत्याशी तो नहीं उतारा लेकिन दबाव भरपूर बनाया। राज्य विधानसभा की 90 में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं।
इनमें से 25 कांग्रेस जीत गई। आदिवासी इलाकों में भाजपा की हार की प्रमुख वजह आदिवासियों के आंदोलनों को माना गया। आदिवासी कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा ने ऐन चुनाव से पहले अपना प्रदेश अध्यक्ष बदला तो कमान आदिवासी सांसद विक्रम उसेंडी को सौंप दी। यह आदिवासी वोटों को अपने पाले में लाने की कवायद माना गया। आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष की सुगबुगाहट तो कांग्रेस में भी रही पर पार्टी फिलहाल इस मुद्दे पर पिछड़ गई है।
विधानसभा से पहले आदिवासियों ने चलाया था पत्थलगड़ी आंदोलन
उत्तर छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों ने पत्थलगड़ी आंदोलन चलाया था। इसके तहत गावों की सीमा पर एक पत्थर गाड़कर उसमें लिख दिया जाता था कि यह पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है जिसमें ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार मिले हुए हैं। इस आंदोलन पर काफी विवाद हुआ।
कई आदिवासी नेता जेल भी भेजे गए। हालांकि आंदोलन उत्तर से दक्षिण तक पहुंच गया। चुनाव से पहले इस मुद्दे को दबाने की बहुत कोशिश की गई। तब कांग्रेस ग्राम सभाओं और पेसा कानून के पक्ष में खड़ी रही। आदिवासी सीटों पर नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए।
इसलिए सुलग रही है आग
आदिवासी इलाकों में खदानों के लिए उद्योगों को जमीनें सौंपी गई हैं। किरंदुल में अडानी, जिंदल, आरती स्पंज समेत कई उद्योगों को लोहे की खदानें सौंपी गई हैं। आदिवासियों का आरोप हैं कि इन खदानों को जो अनुमति मिली है उसमें ग्राम सभाओं का फर्जी अनुमोदन लगाया गया है।
ग्राम सभाओं ने एकजुट होकर इसके खिलाफ प्रस्ताव दिया है फिर भी प्रशासन मानने को तैयार नहीं है। सरगुजा में अडानी की कोयले की खदान में भी फर्जी ग्राम सभा का आरोप है। लोकसभा का बिगुल बजने से पहले इन इलाकों में उद्योगों के खिलाफ बिगुल बज चुका है। चुनाव में इसका असर दिखेगा।