रायपुर। छत्तीसगढ़ में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों की पहचान का पैमाना बदलने की तैयारी है। इस काम के लिए 2011की जनगणना के आंक़ड़ों का सहारा लिया जाएगा। राज्य में गरीबों की संख्या को लेकर पहले ही कई तरह के विवाद सामने आ चुके हैं। राज्य सरकार ने गरीबों को सस्ती दरों पर चावल देने की योजना शुरू की थी तब अचानक गरीबों की संख्या बढ़ गई थी। बाद में जब महिलाओं को परिवार का मुखिया बनाकर राशन कार्ड बनाए जाने लगे तब भी राशन कार्ड़ों की तादाद बड़े पैमाने पर बढ़ी, लेकिन जब राशन कार्डों में फर्जीवाड़े की शिकायतें आने लगी तो जांच के बाद लाखों राशनकार्ड निरस्त किए गए। कुल मिलाकर गरीबों को सहायता देना कहीं न कहीं वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा मसला भी है। पुराने अनुभव को देखते हुए राज्य सरकार इस मसले पर बेहद बारीकी और सतर्कता से काम कर रही है। इस बीच केंद्र से भी ऐसे संकेत मिले कि किसी भी हाल में गरीबी या गरीबों की संख्या कम की जाए। विश्लेषकों और जानकारों की राय में यह पूरा खेल इसी उपक्रम का हिस्सा है। सरकार अब इस कोशिश में है कि बीपीएल मानकों में बदलाव करके सहायता उन्हीं लोगों तक पहुंचाएं जो उसके लक्ष्य के केंद्र में हैं।
रमन कैबिनेट द्वारा सामाजिक आर्थिक एवं जातीय जनगणना 2011 के अनुमोदन के साथ अब माना जा रहा है केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचाने के लिए नए मानक तय किए जाएंगे। जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से प्रदेश की बीपीएल सूची में बदलाव आएगा और गरीबों को सरकार से मिलने वाली सहायता पर भी इसका असर होगा।
बताया गया है कि इस मामले में सरकार ने फिलहाल यह तय किया है कि सभी विभागों से यह जानकारी ली जाएगी कि किस योजना के तहत किस वर्ग के लोगों को केंद्र और राज्य की किन योजनाओं का लाभ मिल रहा है। सभी विभाग इस संबंध में एक प्रस्तुतीकरण पेश करेंगे। इसके बाद राज्य मंत्रिपरिषद की अनुमति लेकर अनुमोदन किया जाएगा।
गरीबी रेखा के नए मानक होंगे तय
सूत्रों के अनुसार सामाजिक,आर्थिक और जातीय जनगणना के अनुमोदन के साथ ही वर्ष 2002 में बनाई गई राज्य की में बीपीएल सूची रद्द हो जाएगी। गरीबी रेखा के नए मानक इस सूची के आधार पर तैयार किए जाएंगे। गरीब परिवार को इस प्रकार चिन्हित किया जाएगा जैसे ऐसा परिवार जिसके घर में कच्ची दीवारें हो,कच्ची छत हो और एक कमरे में रहने की मजबूरी हो। परिवार में 16 से 59 साल का कोई व्यस्क सदस्य मौजूद न हो।16 से 59 वर्ष आयु के किसी वयस्क पुरुष की अनुपस्थिति में परिवार में महिला का प्रमुख होना,25 वर्ष से ज्यादा आयु के किसी साक्षर व्यस्क का परिवार में मौजूद न होना, भूमिहीनता की स्थिति में पारिवारिक रोजगार का मुख्यतया अनौपचारिक शारीरिक मजदूरी पर निर्भर होना। परिवार का अनुसूचित जाति या जनजाति का होना भी शामिल है।
कुछ भी साफ नहीं
इस मामले को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने खुद मीडिया से कहा है कि इस बारे में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। सभी विभागों से बात करके यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक लोगों को किस प्रकार मिले।
बढ़ेगी गरीबों की संख्या
अर्थशास्त्री डॉ.जेएल भारद्वाज का कहना है कि गरीबी के जो सात मानक तय किए गए हैं उनमें गरीबी की परिभाषा को और व्यापक किया गया है। यह एक अच्छी बात है। वंचित लोगों को अधिक से अधिक सुविधाएं देने की बात कही जा रही है यह सही कदम है।
खेलों को सुरक्षा में छूट से नाराजगी
राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में तय किया गया है कि राज्य में होने वाले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेलों में सुरक्षा पर लिए जाने शुल्क में 90 फीसदी की छूट दी गई है। खेल आयोजकों से केवल 10 प्रतिशत सुरक्षा राशि ली जाएगी। सूत्रों के अनुसार बैठक में मौजूद करीब सभी मंत्रियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। मंत्रियों ने कहा कि इस तरह की छूट से राज्य को कोई फायदा नहीं होने वाला है। छूट के बजाय इनसे वसूली गई राशि से स्थानीय खेलों को प्रोत्साहन देना चाहिए, गांवों के खेल मैदान और स्टेडियम पर खर्च होना चाहिए। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने इस पर कहा कि फिलहाल हमें इस निर्णय का पालन करना चाहिए। बाद में खेल विभाग इस पूरे मामले को लेकर एक नीति बनाएगा।