साल में एक बार रायपुर के सत्ती बाजार अंबा देवी मंदिर में मां अंबे का शाकंभरी देवी के रूप में श्रृंगार
पौष पूर्णिमा पर हरी सब्जियों से सजाते हैं देवी की प्रतिमा, श्रद्धालु शाकंभरी माता को भोग के रूप में सब्जियां अर्पित करते हैं।
By Kadir Khan
Edited By: Kadir Khan
Publish Date: Sun, 16 Jan 2022 10:20:00 AM (IST)
Updated Date: Sun, 16 Jan 2022 10:20:21 AM (IST)

रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। हिंदू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर मां शाकंभरी महोत्सव मनाने की परंपरा है। इस साल 17 जनवरी को शाकंभरी महोत्सव मनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सत्ती बाजार स्थित अंबा देवी मंदिर में मां अंबे की प्रतिमा का साल में एक बार शाकंभरी देवी के रूप में श्रृंगार किया जाता है। खास बात यह है कि प्रतिमा का श्रृंगार हरी सब्जियों से ही किया जाता है। श्रद्धालु शाकंभरी माता को भोग के रूप में सब्जियां अर्पित करते हैं। सब्जियों से किया गया श्रृंगार आकर्षण का केंद्र होता है।
50 साल से निभा रहे परंपरा
मंदिर के पुजारी पंडित पुरुषोत्तम शर्मा बताते हैं कि मंदिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा की पूरे साल मां अंबे के रूप में पूजा की जाती है, लेकिन पौष पूर्णिमा पर देवी प्रतिमा को शाकंभरी देवी के रूप में पूजा जाता है। लगभग 50 साल पहले 1970 में प्रतिमा का श्रृंगार सब्जियों से किया गया था।
इसके बाद से यह परंपरा लगातार निभाई जा रही है। एक दिन पहले ही श्रद्धालु मंदिर में सब्जियां लेकर आ जाते हैं। पौष पूर्णिमा पर सुबह सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है। सुबह 8 बजे के बाद सब्जियाें से किया गया श्रृंगार का दर्शन पट खोला जाता है। भक्तगण दिन में भी जैसे-जैसे सब्जियां अर्पित करते हैं, श्रृंगार का स्वरूप भी बदला जाता है।
अगले दिन सब्जियों का प्रसाद वितरण
पौष पूर्णिमा पर मंदिर का पट बंद होते तक श्रृंगार दर्शन का लाभ भक्त लेते हैं। अगले दिन सुबह सब्जियों को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है।
नौ दिवसीय महोत्सव का समापन
मंदिर की परंपरा के अनुसार हिंदू पंचांग के चैत्र माह और क्वांर माह की नवरात्रि के अलावा आषाढ़ और माघ माह में गुप्त नवरात्रि मनाई जाती है। नवरात्रि की तरह ही शाकंभरी महोत्सव भी नौ दिनों तक मनाया जाता है। शाकंभरी पूजा की शुरुआत 10 जनवरी को अष्टमी तिथि पर की गई थी, इसका समापन 17 जनवरी को पूर्णिमा तिथि पर किया जाएगा।
फसल अच्छी होने की कामना
पटेल समाज और सोनकर समाज में मां शाकंभरी की पूजा इष्ट देवी के रूप में की जाती है। देवी मां से परिवार में सुख, समृद्धि और अच्छी फसल होने की कामना करते हैं, ताकि समाज के लोगों का पैतृक व्यवसाय खेत, खलिहान में हरियाली छाई रहे।
धरती को हरा भरा किया
ऐसी मान्यता है कि दुर्गम नामक दैत्य के प्रकोप से 100 साल तक पानी नहीं बरसा। दैत्य ने चारों वेद भी चुरा लिया। मां दुर्गा ने शाकंभरी के रूप में दैत्य का संहार किया और देवताओं को वेद वापस लौटाया। 100 आंखों वाली मां शाकंभरी के प्रताप से धरती में चारों तरफ हरियाली छा गई। देवी ने शरीर से पैदा हुए शाक से सभी का पालन-पोषण किया। इसी मान्यता के चलते सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है।