रायपुर(ब्यूरो)। छत्तीसगढ़ का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना पर अब संकट के बादल घिरते जा रहे हैं। प्रदेश में पहाड़ी मैना की वंशवृद्धि नहीं होने के कारण वाइल्ड लाइफ के अधिकारियों के होश उड़ गए हैं। पहाड़ी मैना के नर और मादा की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट की तैयारी की गई थी, लेकिन एक साल बाद भी यह योजना सफल नहीं हो पाई। इसके साथ ही कैप्टिव ब्रिडिंग का कार्यक्रम भी शुरू नहीं हो पाया, जिसके कारण पहाड़ी मैना की वंशवृद्धि नहीं हो पा रही है। प्रदेश में अब सिर्फ कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना की दुर्लभ प्रजाति मिल रही हैं।
प्रदेश में राजकीय पक्षी की वंशवृद्धि के लिए दो दशक से प्रयास चल रहा है। वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के वैज्ञानिकों ने कैप्टिव ब्रिडिंग को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के परीक्षण कराए, लेकिन सफल नहीं हो पाए। विशेषज्ञों के सामने संकट यह है कि मैना को देखकर नर और मादा का फर्क नहीं किया जा सकता। वाइल्ड लाइफ की ओर से पिछले दस साल में पहाड़ी मैना को बचाने के लिए करोड़ों रुपए भी खर्च कर दिए गए, लेकिन कोई ठोस सफलता नहीं मिली। पहाड़ी मैना के लुप्त होने के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार की पहल पर विशेषज्ञों के दल ने कांगेर घाटी का दौरा किया था। जूलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने भी पहाड़ी मैना की वंशवृद्धि को लेकर प्रयास किया।
पिंजरे में बची सिर्फ दो मैना
पहाड़ी मैना की कैप्टिव ब्रिडिंग योजना के तहत पिंजरे में छह मैना को रखा गया, लेकिन अब सिर्फ दो बची हैं। बस्तर के वनविद्यालय में ब्रिडिंग कराने की तैयारी की गई, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। विशेषज्ञों के अनुसार, वनविद्यालय सड़क मार्ग के नजदीक होने के कारण पहाड़ी मैना के प्रजनन में काफी दिक्कतें आती हैं। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पहाड़ी मैना ने दो अंडे भी दिए थे, लेकिन इसमें से बच्चे नहीं निकल पाए। पहाड़ी मैना के डीएनए टेस्ट की योजना भी बनाई गई थी। मैना के पंख को टेस्ट के लिए हैदराबाद भेजा जाना था, लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो पाई। पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ रामप्रताप ने बताया कि पहाड़ी मैना के नर और मादा की पहचान कर पाना काफी मुश्किल काम है। डीएनए टेस्ट और कैप्टिव ब्रिडिंग का कार्यक्रम अभी शुरू नहीं हो पाया है।
बचाने का चल रहा उपाय
पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ रामप्रताप ने बताया कि पहाड़ी मैना को बचाने के लिए कई स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। उसे प्राकृतिक क्षेत्र में बढ़ाने की तैयारी चल रही है। इसके साथ ही पहाड़ी मैना के अंडों की चोरी रोकने का भी इंतजाम किया जा रहा है। कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जिसमें शिकारी पहाड़ी मैना के अंडे को चुराकर बेचने की कोशिश कर रहे थे। पहाड़ी मैना के पसंदीदा आवासन में खाना उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है। जहां पहाड़ी मैना की संख्या ज्यादा है, वहां बरगद, पीपल, गूलर, सेमल की प्रजातियों के पेड़ लगाए जा रहे हैं।