रायपुर। पौराणिक धर्मग्रंथों की परंपरा के अनुसार आम इंसानों की तरह भगवान जगन्नाथ के भी बीमार होने की परंपरा का पालन मंदिरों में किया जाता है। भगवान को स्वस्थ करने के लिए औषधियुक्त काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है। भगवान स्वस्थ होने के पश्चात अपनी प्रजा से मिलने रथ पर अपने भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी में यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। पुरी धाम की परंपरा का अनुसरण राजधानी रायपुर के 10 से अधिक जगन्नाथ मंदिरों में भी किया जाता है।
इनमें से दो ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर हैं, जिनका निर्माण 200 से लेकर 500 साल पहले किया गया था। तीसरा मंदिर 22 साल पहले बना था, लेकिन इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं, कारण कि यहां निभाई जाने वाली परंपरा में प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल शामिल होते हैं। रथयात्रा रवाना करने से पहले स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसलिए, यह मंदिर खास है। ऐसी ही रोचक जानकारी दे रहे हैं, नईदुनिया के संवाददाता श्रवण शर्मा
छत्तीसगढ़-ओड़िसा की संस्कृति में समानता
छत्तीसगढ़ के बार्डर से ओडिशा की सीमा प्रारंभ होती है। दोनों राज्याें के अनेक पर्व, त्यौहारों में काफी समानता है। ओडिशा से लाखों लोग छत्तीसगढ़ में आकर बस चुके हैं, ओड़िसा में मनाए जाने वाले अनेक त्यौहार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें से एक रथयात्रा पर्व भी है। जिस दिन पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकाली जाती है, उसी दिन राजधानी में भी लगभग 10 मंदिरों से रथयात्रा निकलती है। भगवान स्वयं मंदिर से बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। रथ को खींचने श्रद्धालुओं मेें होड़ सी लगी रहती है, श्रद्धालु एक बार रथ और रथ की रस्सी को छूकर अपने आपको धन्य समझते हैं।
4 जून से बंद मंदिर 19 को खुलेंगे, 20 को रथयात्रा
गत दिनों 4 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराने की परंपरा निभाई गई थी। 108 कलशों से श्रीविग्रह को स्नान कराया गया था। इसके पश्चात भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ हो गए हैं और विश्राम कर रहे हैं। मंदिरों के पट बंद है, श्रद्धालु बंद पट के बाहर ही मत्था टेककर भगवान का हाल-चाल जानने पहुंच रहे हैं। मंदिर के पट आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को खोले जाएंगे। भगवान के नेत्र खोलने की रस्म निभाई जाएगी। इसके अगले दिन द्वितीया तिथि पर 20 जून को धूमधाम से रथयात्रा निकाली जाएगी।
पुरानी बस्ती में टुरी हटरी का ऐतिहासिक मंदिर
राजधानी का सबसे पुराना जगन्नाथ मंदिर पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में हैं। मठ के महंत रामसुंदरदास बताते हैं कि यह लगभग 500 साल पुराना मंदिर है।इन दिनों भगवान अस्वस्थ हैं और काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जा रही है। किसी मंदिर में पंचमी, कहीं नवमीं और कहीं एकादशी तिथि पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाएगी। भगवान को रथयात्रा पर विराजित करके गुंडिचा मंदिर ले जाने की परंपरा निभाएंगे। भगवान 10 दिनों तक अपनी मौसी के घर विश्राम करेंगे। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को वापस रथ पर विराजित करके मंदिर लाकर प्रतिष्ठापित किया जाएगा। इसे बहुड़ा रथयात्रा कहते हैं।
कई पीढ़ियों से सेवा कर रहा पुजारी परिवार
दूसरा प्रसिद्ध मंदिर सदरबाजार इलाके में हैं, जो कि 200 साल से अधिक पुराना है। यहां एक ही परिवार के लोग कई पीढ़ियों से भगवान की सेवा कर रहे हैं। परिवार की युवा पीढ़ी के अनेक सदस्य मुंबई, दिल्ली में बस चुके हैं, लेकिन वे भी जगन्नाथ रथयात्रा के दौरान अवश्य आते हैं। कहा जाता है कि कांकेर राजघराने के राजा प्रवीण भंजदेव ने मंदिर को 123 एकड़ जमीन दान में दी। यह जमीन भानुप्रतापपुर के बारादेवरी गांव में है।
12 साल में नया रथ
पुरी धाम में जिस तरह प्रत्येक 12 साल बाद भगवान के श्रीविग्रह को बदलने की परंपरा निभाई जाती है, वैसे ही सदरबाजार के मंदिर में 12 साल पश्चात रथ का निर्माण किया जाता है। श्रीविग्रह को नहीं बदला जाता, केवल रथ का पुनर्निर्माण किया जाता है।
पुरी के समीप गांव से श्रृंगार सामग्री
पुरी मंदिर के समीप स्थित पिपली गांव से भगवान के श्रीविग्रह का श्रृंगार करने के लिए पोशाक एवं अन्य सामग्री मंगवाई जाती है। रथयात्रा से पहले मंदिर के पुजारी यह सामग्री लेकर आते हैं।
नीम-चंदन की प्रतिमा
200 साल पुराना मंदिर पहले छोटा सा था, जिसका जीर्णोद्धार 1930 में किया गया। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं को चंदन-नीम मिश्रित लकड़ी से बनाया गया है, जो सैकड़ों वर्षों तक खराब नहीं होगी।
स्वर्ण निर्मित झाड़ू से बुहारने की रस्म निभाते हैं प्रदेश के मुखिया
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौरान गायत्री नगर में जगन्नाथ मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। 2003 में मंदिर का निर्माण पूरा। रथयात्रा से पूर्व राज्यपाल, मुख्यमंत्री पूजा करके प्रतिमाओं को सिर पर विराजित करके रथ तक लेकर आते हैं। यात्रा से पूर्व रथ के आगे स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से मार्ग को बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसे छेरा-पहरा यानी रथ के आगे सोने से बनी झाड़ू से बुहारने की रस्म कहा जाता है।
अलग-अलग रथ पर विराजते हैं भाई-बहन
श्री जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि पुरी धाम में जिस तरह तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा को विराजित किया जाता है, उसी तर्ज पर गायत्री नगर स्थित मंदिर में भी तीन रथ पर भाई-बहन को विराजित करके यात्रा निकाली जाती है।भ गवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’, भैया बलदाऊ के रथ को ‘तालध्वज’ और बहन सुभद्रा के रथ को ‘देवदलन’ कहा जाता है। सबसे आगे बलदाऊ का रथ, मध्य में सुभद्रा का और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।