रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)
भगवान श्रीकृष्ण ने जब इंद्रदेव द्वारा की गई बारिश के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी, तब सभी ग्वाले खुशी से झूम उठे थे। नाचते गाते ग्वालों ने कई दिनों तक घर-घर जाकर खुशियां मनाई थीं। उसी परंपरा को जीवित रखने के लिए आज भी ग्वाले गोवर्धन पूजा के बाद घर-घर जाकर नाच गाकर खुशियां मनाते हैं। इसी नाच गाने को राउत नाचा के नाम से जाना जाता है।
गायों को बांधते हैं मोर पंख-कौड़ी से सजी सोहइ
झेरिया यादव समाज के संरक्षक माधवलाल यादव बताते हैं कि वर्तमान में राउत नाचा का स्वरूप बदल गया है। पहले जिस घर में भी ग्वाले जाते थे, उनका स्वागत किया जाता था। अब ग्वाले जिस घर में जाते हैं वहां गायों को मोर पंख, कौड़ी से बनी सोहइ यानी गले का पट्टा बांधने की रस्म निभाते हैं। गाय मालिक इसके बदले रुपये देकर विदा करते हैं।
देवउठनी एकादशी से परवान चढ़ेगा राउत नाचा
गोवर्धन पूजा के बाद शुरू हुआ राउत नाचा का सिलसिला देवउठनी एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक परवान चढ़ेगा। इन चार दिनों में संपूर्ण छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में राउत नाचा की धूम मचेगी।
पहनावे में यदुवंशियों की अलग पहचान
यादव बंधु विविध रंग का कुर्ता, धोती पहनते हैं। सिर पर मोर पंख वाली सुंदर पगड़ी सजाकर, पैरों में मोजा के ऊपर घुंघरू डालकर, हाथों में लाठी लेकर नाचते गाते निकलते हैं तो उनकी अलग ही पहचान नजर आती है।
कुछ प्रसिद्ध दोहे व पारंपरिक गीत गाकर समां बांधते हैं यदुवंशी
0 चित्रकूट के घाट पर, भइ संतन की भीड़ ।
तुलसी दास चंदन घिसय, तिलक लेत रघुबीर।
0 अड़गा टूटे बड़गा टूटे, अउ बीच म भूरी गाय हो।
उहां ले निकले नंद कन्हैया, भागे भूत मसान हो।
0 हाट गेंव बाजार गेंव, उंहा ले लाएव लाड़ू रे।
एक लाड़ू मार परेव, राम राम साढ़ू रे।
0 चंद्रपुर के चंद्रहासनी ल सुमरौं, डोंगरगढ़ बमलाई ल।
रावणभाठा के बंजारी ल सुमरौं, रायपुर के महाकाली ल।
0 कागा कोयली दुई झन भइया, अउ बइठे आमा के डार हो।
कोन कागा कोन कोयली, के बोली से पहचान हो।
0 जै जै सीता राम के भैया, जै जै लक्ष्मण बलवान हो।
जै कपि सुग्रीव के भइया, कहत चलै हनुमान हो॥
0 बाजत आवय बासुरी, अउ उड़त आवय धूल हो।
नाचत आवय नंद कन्हैया, खोचे कमल के फूल हो।
0 सबके लाठी रिंगी चिंगी, मोर लाठी कुसवा रे।
नवा नवा बाई लाएव, उहू ल लेगे मुसवा रे।