संदीप तिवारी, रायपुर। RTE: छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत बच्चों को सरकार निश्शुल्क पढ़ाई का अवसर तो दिला रही है पर इन स्कूलों में बच्चे ज्यादा दिन पढ़ नहीं पा रहे हैं। निजी स्कूलों की 25 फीसद सीटों पर वंचित और कमजोर वर्ग के अभिभावक अपने बच्चों का नाम लिखवा रहे हैं, लेकिन इन स्कूलों में यूनिफार्म, कापी-किताब में ही सालाना न्यूनतम 10 से 15 हजार स्र्पये से अधिक खर्च होने के कारण मजबूरी में अभिभावकों को अपने बच्चों का नाम कटवाना पड़ रहा हैं।
हालांकि फीस प्रतिपूर्ति के रूप में सरकार बच्चों की फीस निजी स्कूलों को दे रही है। लेकिन निजी स्कूलों में अन्य मदों पर होने वाले खर्च से अभिभावकों की जेब कट रही है, जो अभिभावक इन मदों पर राशि जमा कर देते हैं वे तो पढ़ा पाते हैं, लेकिन जो जमा नहीं कर पाते हैं उनके लिए दिक्कत हो रही है।
नईदुनिया ने पड़ताल की तो यह बात सामने आई है। वहीं, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के एक आंकड़े मुताबिक छत्तीसगढ़ में आरटीई के तहत स्कूल छोड़ने वाले बच्चों का प्रतिशत 21.4 है। अकेले आरटीई में ही करीब 60 हजार बच्चों ने निश्शुल्क पढ़ाई छोड़ दी। इस मामले में प्रदेश टापटेन राज्यों में शामिल है।
प्रदेश के बच्चों के पढ़ाई छोड़ने की रिपोर्ट भी अफसर लगातार दबाते रहे। स्कूल छोड़ने की वजह को लेकर शिक्षाविदों ने कई कारण गिनाए हैं। उनका मानना है कि बड़े रसूखदार घरानों के बच्चों के साथ गरीब वर्ग से आने वाले बच्चों का तालमेल नहीं बैठ पाता है। ऐसे में वे बच्चे या अभिभावक खुद को असहज महसूस करते हैं।
स्कूल बंद होने से छूटी पढ़ाई
अकेले रायपुर में ही करीब 55 निजी स्कूल बंद हो गए हैं। कोरोना काल में भी करीब 10 स्कूल बंद हो गए हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले आरटीई के हजारों बच्चों की मुफ्त की पढ़ाई भी छिन गई है। ये बच्चे अब कहां पढ़ रहे हैं, इसका जवाब अफसरों के पास नहीं है। कमोबेश दूसरे जिलों में भी स्कूल बंद होने से बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। इनमें धमतरी, कोरिया, सक्ती, बिलासपुर, कांकेर, बेमेतरा, बलौदा बाजार आदि जिलों में बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है।
इस तरह कक्षाओं से गायब हो गए बच्चे
एक उदाहरण के लिए आरटीई के तहत साल 2011-12 में पहली कक्षा में 22 हजार बच्चों ने दाखिला लिया था, इनमें से आठवीं तक सिर्फ सात हजार ही बच्चे ही पहुंच पाए। बाकी 15 हजार किस स्कूल में पढ़ रहे हैं यह शिक्षा विभाग को भी जानकारी नहीं है।
अभिभावकों का पलायन
राजधानी से लगे उरला, सिलतरा में एक अभिभावक ने बताया कि नौकरी छूटने के बाद गांव जाना पड़ा। इसके कारण बच्चे की पढ़ाई छूट गई। किसी भी अभिभावक के पलायन होने या स्थानांतरित होने पर आरटीई के तहत किसी भी तरह का स्थानांतरण प्रमाण पत्र नहीं मिलता। स्कूल छूटने पर निश्शुल्क पढ़ाई भी छूट जाती है।
सरकार की प्रतिपूर्ति सालों से तय है
प्राइमरी में प्रत्येक छात्र के लिए सात हजार रुपये वार्षिक दर पर फीस
मिडिल में प्रत्येक छात्र को 11 हजार 400 रुपये वार्षिक दर पर फीस
यूनिफार्म 540 स्र्पये ,शिक्षण सामग्री 250 से 450 रुपये वार्षिक फीस
जानिए वर्षवार दाखिला
सत्र दाखिल बच्चों की संख्या
2011-12 22, 000
2012-13 25,084
2013-14 33,560
2014-15 44,117
2015-16 25,875
2016-17 37,933
2017-18 41,935
2018-19 40,254
2019-20 48,154
2020- 21 56,675
28 जिलों में संचालित स्कूल
6,548 निजी स्कूल संचालित
83,528 सीटें इन स्कूलों में
'आरटीई में जब बच्चों को बड़े निजी स्कूलों में भर्ती किया जाता है तो इसमें यह कहा गया था कि कोई रकम खर्च न हो ,लेकिन निजी स्कूलों में अभिभावकों को यह राशि देनी होती है। निश्शुल्क का अर्थ है कि कोई राशि खर्च नहीं होना चाहिए। सरकार को यह देखना चाहिए लेकिन इनके लिए नियम नहीं बना। अभी तो कोरोना काल के बाद ड्राप आउट की संख्या बढ़ेगी।'
-गौतम बंधोपाध्याय, संयोजक, शिक्षा का अधिकार फोरम
'कोई भी बच्चा या अभिभावक किसी भी तरह का शुल्क देने के लिए सक्षम नहीं है। सरकार फीस प्रतिपूर्ति देती है लेकिन यह बहुत कम है। इस राशि को बढ़ाया जाए। निजी स्कूलों में बच्चों को 10 से 15 हजार स्र्पये सालाना देना ही पड़ रहा है, यही वजह है कि कुछ अभिभावक अपने बच्चों का नाम कटवाना पड़ रहा है।'
-किस्टोफर पाल, अध्यक्ष , छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसिएशन
'आरटीई में जो बच्चे जाते हैं, उनसे निजी स्कूल वाले कोई भी फीस नहीं ले सकते हैं। न ही खर्च थोप सकते हैं। फीस सरकार देती है। इसलिए निजी स्कूलों को किसी भी तरह की फीस लेने का अधिकार नहीं है। शिकायत होगी तो कार्रवाई करेंगे।
-डा. आलोक शुक्ला, प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा