रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
घर में रहते हुए हमें अनेक तरह के पापों का सेवन करना ही होता है। आप सोचते हैं कि घर में बैठकर धर्म-ध्यान कर लें, यह असंभव है। आप इतने मजबूत नहीं कि काजल की कोठरी में रह कर बेदाग रहेंगे। काजल की कोठरी में कितने भी जतन कर लो, काजल का दाग लग ही जाएगा। हम कौन हैं, कैसे हैं, इसको भूलना ही संसार है। संसार सर्व पापों का मूल है। ये विचार विवेकानंद नगर स्थित श्रीसंभवनाथ जैन मंदिर में आचार्य विजय कीर्तिचंद्र सूरिश्वर महाराज ने व्यक्त किए।
सभी आत्माओं का लक्ष्य मोक्ष है, लेकिन मोक्ष में जाने से पहले यहां पर मोक्ष खड़ा करना पड़ता है। आत्मा जब परम शुद्घि को पाकर सर्व पाप से मुक्त हो जाती है। अपने आत्म स्वरूप में लीन हो जाती है तो सिद्घिशिला पर चली जाती है। इसे परमात्मा की गोद कहा जाता है। इसके विपरीत आत्मा जब दुर्गति को प्राप्त होती है तो निगोद (सात नरकों का समूह) में चली जाती है।
संसार है अंधा कुआं
आचार्यश्री ने कहा कि आप अधिकतम इस जगत में दो हजार वर्ष तक रह सकते हैं। इसके बाद यदि आपका मोक्ष नहीं हुआ तो आपको अनंत काल के लिए निगोद में रहना पड़ेगा। संसार एक तरह का अंधा कुआं है, जिसके तले का पता नहीं है। यहां आत्माएं कहां चली जाती हैं, इसका पता तक नहीं लगता है। हमारी आत्मा ही संसार है, इसलिए इस भव का उपयोग कर लें, अन्यथा संसार कैसे नीचे गिराएगा, इसका कोई भरोसा नहीं।
पाप का धन 12 वर्ष से ज्यादा नहीं टिकता
सद्बुद्धि हमें न्याय और नीतिपूर्वक कर्म करने को प्रेरित करती है, इससे पुण्य बढ़ता है, जबकि दुर्बुद्घि से कमाया गया धन दिवालिया बनाता है। किसी पापाचार, अन्याय से कमाया गया धन 12 वर्ष से अधिक नहीं चलता है। आप संसार में रह कर मोक्ष का अनुभव करें। इस भव जैसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। भव का न ब्रेक है न रिवर्स अगर संसार में रमे तो उसका परिणाम केवल दुख है।