रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
सावन के महीने में शिवशंकर यानी भोले बाबा की आराधना का महत्व शिव भक्तों के लिए कुछ अलग ही होता है। कांवरिए 'बोलबम का नारा है बाबा एक सहारा है..' जयघोष करते, शिव की झांकी संग डीजे की धुन पर मस्ती में झूमते-गाते मंदिरों में शिवलिंग का जलाभिषेक कर रहे हैं। वहीं प्राचीन मंदिरों में भोले बाबा के दर्शन कर आशीर्वाद लेने हजारों लोग उमड़ रहे हैं। राजधानी रायपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर बेलदार सिवनी गांव स्थित सर्व मनोकामना अर्धनारीश्वर स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन करने के लिए भी दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। मंदिर के पुजारी पंडित नीलम प्रसाद शर्मा के अनुसार यह मंदिर 200 वर्ष से भी अधिक पुराना है। तीन पीढ़ियों से उनका परिवार मंदिर में सेवा दे रहा है। पंडित ने बताया- यह मंदिर इलाके में स्वयंभू प्राचीन शिव मंदिर के रूप में चर्चित है। मंदिर का रखरखाव व संरक्षण गांव के ही अरुण अग्रवाल परिवार करता है। इसकी महत्ता इसलिए खासी है, क्योंकि इस शिवलिंग को कहीं से लाकर स्थापित नहीं किया गया, बल्कि यह जमीन से स्वयं निकले हैं। इसीलिए इसे स्वयंभू कहते हैं। यह शिवलिंग साल में तीन रंग बदलते हैं। इसलिये यह भक्तों के आकर्षण का केंद्र हैं, दर्शनार्थियों का तांता लगता है।
सपने में दिखे शिव बाबा
अर्धनारीश्वर स्वयंभू शिवलिंग के प्रति श्रद्धालुओं व गांव के लोगों में बड़ी आस्था है। मंदिर के पुजारी की जुबानी- मंदिर के इतिहास के बारे में यही कहा जाता है कि इसकी स्थापना 200 वर्ष पहले हुई। अग्रवाल परिवार को शिव बाबा ने सपने में दर्शन दिये। कहा कि मैं मकान के एक भाग (जहां मंदिर है) में हूं, बाहर निकालो। इसके बाद अग्रवाल परिवार ने गांव के लोगों से चर्चा कर उस जगह की खुदाई की और शिवलिंग मिले। गांव के लोग सर्वसम्मति से शिवलिंग को गांव के तालाब के पास ले जाकर स्थापित करना चाह रहे थे, लेकिन उस स्थान से शिवलिंग को टस से मस नहीं कर सके। इस पर निर्णय लिया गया कि यहीं पर मंदिर बना दिया जाए।
तीन बार बदलते हैं रूप
सावन के अलावा महाशिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। गांव के अलावा आसपास के दूसरे गांवों, यहां तक कई शहरों से भी भक्त इस मंदिर में माथा टेकने पहुंचते हैं। मंदिर के पास ही कुंड है, जहां पर कांवरिए 'बोलबम का नारा है बाबा एक सहारा है... का जयघोष करते स्नान कर शिवबाबा पर जल चढ़ाते हैं। शिवलिंग के बदलते स्वरूप पर पंडित का कहना है- साल में तीन रूप धारण करते हैं। वर्षा ऋ तु में शिवलिंग का रंग काला एवं चिकना हो जाता है, शीत ऋ तु में काला एवं खुरदुरा और ग्रीष्म ऋ तु में भूरा रंग का हो जाता है साथ ही शिवलिंग के बीच में ऊपर से नीचे तक दरार आ जाती है। इसमें माचिस की तीली, सिक्का डालने पर घुस जाता है। इसका उल्लेख मंदिर के शिलालेख पर भी किया गया है।