रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की मौत की वजह 'एब्डोमिनल एओर्टिक एन्युरिज्म' बीमारी थी। उन्हें कमर में दर्द था। उस दौर में मेडिकल साइंस भी इतना विकसित नहीं था। इस बीमारी की समय रहते पहचान नहीं हो पाई और जान चली गई। यह जानकारी एडवांस कॉर्डियक इंस्टिट्यूट (एसीआइ) के कॉर्डियक थोरोसिक के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू ने दी। वह इसलिए, क्योंकि उन्होंने इसी बीमारी से चार महीने से पीड़ित लिंकन क्रिस्टियान की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। लिंकन अगर समय पर अस्पताल न पहुंचते और महाधमनी में बना यह गुब्बारा फूट जाता तो दुनिया का कोई भी डॉक्टर जिंदगी लौटा नहीं पाता। इतना ही नहीं, अगर ऑपरेशन टेबल पर भी यह गुब्बारा फूटता तो डॉक्टर के पास कोई विकल्प नहीं बचता।
भिलाई के रहने वाले ट्रेवल एजेंसी संचालक 52 वर्षीय लिंकन को भिलाई के डॉक्टर ने कह दिया था- आप दिल्ली या वेल्लोर चले जाएं। इस दौरान लिंकन आयुर्वेदिक इलाज कराते रहे। आयुर्वेद डॉक्टर भी बीमारी से निजात दिलाने का दावा करते रहे। रायपुर के डॉक्टर्स ने 10 लाख रुपये इलाज का खर्च बताया, जिसे लिंकन का परिवार वहन नहीं कर पा रहा था। किसी ने उन्हें आंबेडकर अस्पताल से संबद्ध एसीआइ की जानकारी दी। आंबेडकर में 80 हजार रुपये खर्च बताया गया। कॉर्डियक थोरोसिक सर्जन डॉ. साहू ने ओपीडी में जांच की। एमआरआइ, सीटी स्कैन में साफ हो गया कि महाधमनी, जो हृदय से शरीर के सभी हिस्सों में खून की सप्लाई करती है, में एक गुब्बारा बना हुआ है। परिजनों से कहा कि 100 फीसद रिस्क है, ऑपरेशन ही एक मात्र विकल्प है। पांच घंटे की सर्जरी के बाद लिंकन ठीक हैं। मंगलवार को उन्हें छुट्टी दे दी जाएगी। इस सर्जरी को 'एओर्टो बाई इलायक बाइपास' कहा जाता है। 'नईदुनिया' से बातचीत करते-करते लिंकन भावुक हो गए और बोले- 'डॉक्टर ही गॉर्ड है।'
जाने क्या है बीमारी एब्डॉमिनल एओर्टिक एन्युरिज्म -
महाधमनी की दीवार तीन परतों से बनती है। किसी भी कारण से मध्य परत, जिसको ट्यूनिका मीडिया कहते हैं, वह कमजोर हो जाती है तो महाधमनी का वह भाग गुब्बारे के समान फूल जाता है। ब्लड प्रेशर ज्यादा रहा तो गुब्बारा फूट जाता है, इसलिए इसे 80 पर रखा गया। डॉ. साहू का कहना है कि इस बीमारी के कारण पैरों में खून की सप्लाई प्रभावित हो रही थी। किडनी पर भी इसका असर पड़ रहा था।
बीमारी का कारण- डॉक्टर्स कहते हैं कि धमनियों में कोलेस्ट्राल का जमना, स्मोकिंग, तंबाकू चबाना बीमारी के कारण हो सकते हैं। सिफलिस की बीमारी, कनेक्टिव टिश्यू डिसआर्डर जैसे मारफैन सिंड्रोम, वंशानुगत भी कारण हैं। पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा नौ गुना ज्यादा यह बीमारी पाई जाती है। अधिकांश मरीज 50 से 70 वर्ष के बीच के होते हैं।
डॉक्टर्स, स्टाफ जिन्होंने की सर्जरी-
कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जन- डॉ. कृष्णकांत साहू, डॉ. निशांत सिंह चंदेल, डॉ. आरती (पीजी)। एनेस्थेटिस्ट- डॉ. ओपी सुंदरानी, डॉ. राजेश। नर्सिंग स्टाफ- राजेंद्र, मुनेस कुमार।
ऐसे चला पांच घंटे ऑपरेशन-
हाई रिस्क में डॉ. साहू के नेतृत्व में सर्जरी शुरू की। आठ बाई 16 मिमी के आकार का डेक्रॉन ग्रॉफ्ट मुंबई से मंगवाया गया। बस यही मरीज के परिजनों को खर्च आया, क्योंकि इनके पास स्मार्ट कार्ड या फिर आयुष्मान कार्ड नहीं था। पेट खोला गया तो यह गुब्बारा (एन्यूरिज्म) अंतड़ियों से चिपका हुआ था। ऑपरेशन का तरीका बदला गया। इसके बाद महाधमनी में क्लैंप लगाया व गुब्बारे वाले हिस्से को काटकर बाहर कर दिया गया।