रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। राजधानी की प्रसिद्ध लाइब्रेरी नालंदा परिसर और संस्कृत कालेज के सामने स्थित आयुर्वेद कालेज व अस्पताल में आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। आठ फीट ऊंची प्रतिमा कांस्य धातु से बनी है। एक ओर जहां घर-घर में साल में एक बार ही भगवान धन्वंतरि की पूजा करके निरोगी शरीर की कामना की जाती है, वहीं दूसरी ओर आयुर्वेद कालेज में प्रतिदिन पूजन किया जाता है।
अस्पताल के डाक्टर, नर्स, वार्ड ब्वाय, कर्मी और अस्पताल में आने वाले सैकड़ों मरीज भगवान धन्वंतरि को प्रणाम करते हैं। भगवान धन्वंतरि अपने चार हाथों में आयुर्वेदिक औषधि को धारण किए हुए हैं। वे संदेश देते हैं कि स्वस्थ रहने के लिए दिनचर्या का सही पालन करें और जब शरीर को रोग घेरने लगे तो प्रकृति द्वारा प्रदत्त पेड़-पौधों से मिलने वाली जड़ी बूटियों का सेवन करके रोग भगाएं और स्वस्थ रहें।
2014 में प्रतिमा की स्थापना
डा. संजय शुक्ला के अनुसार आयुर्वेदिक कालेज, अस्पताल में 2014 में भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा स्थापित की गई। इसका निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार पद्मश्री जे.नेल्सन ने किया है। भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद चिकित्सा के जनक हैं।
चार हाथों में आयुर्वेद के प्रतीक और संदेश
भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा में चार भुजाएं हैं। चारों हाथों में आयुर्वेद के प्रतीक चिह्न हैं। एक हाथ में जीवनदायिनी अमृत कलश है, जो संदेश देता है कि जल के बिना सब सूना है। दूसरे हाथ में गिलोय औषधि है, जिसका उपयोग कोरोना महामारी में विश्वभर के मरीजों के लिए काढ़ा बनाने में किया था। लाखों मरीज इसी गिलोय औषधि का काढ़ा पीकर स्वस्थ हुए थे।
तीसरे हाथ में शंख थाम रखा है। यह संदेश देता है कि जो प्रतिदिन शंख बजाता है, उसे स्वांस, दमा, हृदय रोग में लाभ होता है। शंख बजाने से नकारात्मक शक्तियां दूर भागती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। चौथे हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ है। जो इस ग्रंथ में उल्लेखित नियमों, दिनचर्या का पालन करता है, उसके आसपास भी बीमारियां नहीं फटकती। व्यक्ति हमेशा स्वस्थ रहता है।
अमृत कलश लेकर प्रकट हुए धन्वंतरि
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। देवी, देवताओं के अस्वस्थ होने पर वेद ही आयुर्वेद चिकित्सा से इलाज करते थे।