रायपुर। हिन्दुओं के पवित्र तीर्थस्थलों चारधाम में से एक ओडिशा का पुरी मंदिर भी है, जहां भगवान जगन्नाथ विराजे हैं। वहां की अनेक परंपराओं का पालन राजधानी रायपुर के जगन्नाथ मंदिरों में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में ओडिशा से आए लाखों लोग कई शहरों में रहते हैं। इसके कारण छत्तीसगढ़ और ओडिशा की संस्कृति में काफी समानताएं हैं, इसका उदाहरण जगन्नाथ यात्रा में दिखाई देता है।
राजधानी में वैसे तो आठ जगन्नाथ मंदिर हैं, किन्तु तीन बड़े मंदिरों से निकलने वाली रथयात्रा में हजारों भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। पुरी में निभाई जाने वाली रस्मों का हूबहू पालन यहां किया जाता है। मंदिरों के पट 17 जून से भगवान के बीमार पड़ने की परंपरा निभाने के साथ ही 15 दिनों के लिए पट बंद हो जाएंगे। चार जुलाई को भव्य रथ यात्रा निकाली जाएगी।
टुरी हटरी में 500 साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर
पुरानी बस्ती के टुरी हटरी इलाके में लगभग 500 साल पुराना जगन्नाथ मंदिर है। इस मंदिर का संचालन ऐतिहासिक दूधाधारी मठ ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मठ के महंत रामसुंदर दास के सानिध्य में निकाली जाने वाली रथयात्रा को देखने के लिए पुरानी बस्ती के लोग उमड़ पड़ते हैं। यहां पुरी के मंदिर की तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराने और बीमार पड़ने के बाद पंचमी, नवमी, एकादशी पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है।
आठ पीढ़ी से पुजारी परिवार कर रहा सेवा
सदरबाजार स्थित जगन्नाथ मंदिर का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है। मंदिर प्रमुख ओमप्रकाश पुजारी बताते हैं कि जब से मंदिर बना है, तब से लेकर अब तक आठ पीढ़ियां भगवान जगन्नाथ की सेवा में लगी हैं।
12 साल में रथ का पुनर्निर्माण
ओडिशा के मूल धाम में जिस तरह हर 12 साल में भगवान का विग्रह नए सिरे से तैयार किया जाता है, उसी तरह सदर बाजार मंदिर का रथ हर 12 साल में बदला जाता है, लेकिन भगवान की मूर्तियां नहीं बदली जातीं। भगवान का रथ इससे पहले 2010 में बनाया गया था और अब 2022 में बनेगा।
पिपली गांव से मंगवाते हैं श्रृंगार सामग्री
मूर्तियों की विशेष श्रृंगार सामग्री ओड़िसा के पुरी मंदिर से 20 किलोमीटर दूर पिपली गांव से मंगाई जाती है।
नीम व चंदन से बनी है प्रतिमा
मंदिर का जीर्णोद्धार सन् 1930 यानी हिन्दू संवत्सर 1986 में किया गया। मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बड़े भैय्या बलदाऊ एवं बहन देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं चंदन और नीम मिश्रित लकड़ी से बनी हैं, जो सैकड़ों साल तक खराब नहीं होतीं।
सबसे पुराने मंदिर में कोई ट्रस्टी नहीं
राजधानी का यह पहला मंदिर है, जहां कोई ट्रस्ट नहीं है। मंदिर का संचालन पुजारी परिवार के सदस्य आपस में मिलजुलकर करते हैं। साथ ही कांकेर राजघराने के राजा प्रवीण भंजदेव द्वारा दान में दी गई 123 एकड़ जमीन जो भानुप्रतापपुर के बारादेवरी ग्राम में है, उसकी देखरेख भी पुजारी परिवार कर रहा है।
गायत्री नगर मंदिर, जहां राज्यपाल निभाते हैं झाड़ू लगाने की परंपरा
पुरी शैली की तर्ज पर बना गायत्री नगर स्थित विशाल मंदिर छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। यहां प्रवेश द्वार से लेकर मंदिर की सीढ़ियों तक कालीन बिछाई जाती है। मंदिर के चारों ओर गुंबद में वास्तु अनुरूप देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं। रथयात्रा के दिन राज्यपाल और मुख्यमंत्री छेरा-पहरा (रथ के आगे सोने की झाड़ू से बुहारना) की रस्म निभाते हैं।
तीन रथ पर सवार होते हैं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और माता सुभद्रा
मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि पुरीधाम में जिस तरह हर साल तीन अलग-अलग रथ पर भगवान को विराजित कर नगर भ्रमण करवाया जाता है। उसी तरह राजधानी में एकमात्र गायत्री नगर के जगन्नाथ मंदिर में भी तीन रथ निकलते हैं। जगन्नाथ के रथ को 'नंदी घोष'व बलभद्र के रथ को 'तालध्वज' तथा सुभद्रा के रथ को 'देवदलन' रथ कहा जाता है। सबसे आगे बलरामजी का रथ, बीच में सुभद्राजी का और आखिरी में जगन्नाथजी का रथ निकाला जाता है।
राज्य बनने के तीन साल बाद बना मंदिर
वर्ष 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तब मंदिर की आधारशिला रखी गई। 2003 में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ। ओडिशा से आए विद्वान आचार्यों ने विधिवत प्राणप्रतिष्ठा की थी। भगवानकी मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनाई गई है। रथयात्रा के दौरान ओडिशा से मंगाई गई पोशाक व गहनों से विशेष श्रृंगार किया जाता है।