रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। छत्तीसगढ़ के अनेक साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से देशभर में छाप छोड़ी है, उनमें से एक 86 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल आज भी अपनी लेखनी के माध्यम से साहित्य जगत में संदेश दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ के सैकड़ों साहित्यकाराें ने उनसे प्रेरणा लेकर अपनी पहचान बनाई है, युवा लेखक भी उनकी तरह ऊंचाइयों को छूने की चाहत रखते हैं।
बावजूद इसके, साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत ढेरो पुरस्कार हासिल कर चुके श्रीशुक्ल कहते हैं कि वे अभी भी लिखना सीख रहे हैं। उनकी चाहत एक ऐसी कविता लिखने की है, जो सिर्फ एक लाइन की हो। जिसे पढ़कर हर आदमी कुछ सोचने को मजबूर हो जाए।
जनवरी माह की पहली तारीख को ही श्रीशुक्ल ने 86वें वर्ष में प्रवेश किया है। पिछले दिनों उनके सम्मान में जब वृंदावन हाल में कार्यक्रम हुआ तो उन्होंने युवा लेखकों को संदेश देते हुए कहा कि अच्छा लिखने के लिए अच्छा साहित्य पढ़ें। लेखनी में धार तभी पैदा होगी जब देश के नामचीन लेखकों की किताबों को पढ़ेंंगे। वे स्वयं जीवनभर लिखते रहना चाहते हैं और हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते हैं।
लेखन ऐसा हो जो समाज हित में, आम आदमी के जीवन को झकझोरने वाला और प्रकृति की सुंदरता से सरोकार रखता हो। ऐसा लिखें जिससे समाज के हर तबके को संदेश मिले और जीवन संघर्ष में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे। अच्छा सोचें और बेवजह विवाद हो ऐसा कभी न लिखें।
नौकर की कमीज पर बनी थी फिल्म
1937 की पहली जनवरी को राजनांदगांव में जन्में श्री शुक्ल का पहला कविता संग्रह 1971 में 'लगभग जय हिन्द' नाम से प्रकाशित हुआ। 1979 में 'नौकर की कमीज़' नाम से उनका उपन्यास आया। जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने इसी से नाम से फिल्म भी बनाई। खास बात यह है कि इस उपन्यास से संबंधित लेखन को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया। उनके एक उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए 1999 में 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी है। आज वे सर्वाधिक चर्चित लेखक हैं। अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से शुक्ल ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया है।
जन्मभूमि को ब्रह्मांड लेकर जाना
श्री शुक्ल कहते हैं कि उनकी जन्मभूमि राजनांदगांव रग-रग में रची बसी है, वे अपनी जन्मभूमि को अपने साथ ब्रह्मांड में ले जाना चाहते हैं, अपने बचपन, अध्यापन काल, साहित्य लेखन काल को कभी नहीं भूलना चाहते।
प्रमुख कृतियां
- - लगभग जयहिंद ' 1971
- -' वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह' - 1981
- - सब कुछ होना बचा रहेगा ' 1992
- - ' अतिरिक्त नहीं ' 2000.
- - कविता से लंबी कविता 2001
- -' आकाश धरती को खटखटाता है '2006
- - ' पचास कविताएं' 2011
- - ' कभी के बाद अभी ' 2012
- - ' कवि ने कहा ' -चुनी हुई कविताएं 2012
- - ' प्रतिनिधि कविताएँ ' 2013
उपन्यास
- ' नौकर की कमीज़ ' 1979
- -' खिलेगा तो देखेंगे ' 1996
- - ' दीवार में एक खिड़की रहती थी ' 1997
- - हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ' 2011
कहानी संग्रह
- - ' पेड़ पर कमरा ' 1988
- -' महाविद्यालय ' 1996
- -' एक कहानी ' 2021.
- -' घोड़ा और अन्य कहानियां ' वर्ष 2021
- - ‘गोदाम’ 2020
- - ‘गमले में जंगल’, 2021.
प्रमुख सम्मान
- ' गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप ' (म.प्र. शासन)
- ' रज़ा पुरस्कार ' (मध्यप्रदेश कला परिषद)
-' शिखर सम्मान ' (म.प्र. शासन)
-' राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ' (म.प्र. शासन)
- ' दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान' (मोदी फाउंडेशन)
- ' साहित्य अकादमी
’ हिन्दी गौरव सम्मान' (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उ.प्र. शासन)
- ' मातृभूमि' पुरस्कार, 2020
- ' साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान “महत्तर सदस्य” चुने गये 2021