रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। साल 2022 की चैत्र नवरात्र को मात्र तीन दिन शेष बचे हैं। राजधानी रायपुर में देवी मंदिरों में इस साल धूमधाम से नवरात्र मनाने की तैयारियां चल रही है। एक दर्जन से अधिक प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां भक्तों का तांता लगता हैं। इनमें पुरानी बस्ती में एक ऐसा मंदिर है जहां एक ही परिसर में दो देवियां आमने सामने विपरीत दिशा में प्रतिष्ठापित हैं। सूर्यदेव का जब पूर्व दिशा में उदय होता है तो पश्चिम दिशा में स्थित पूर्वाभिमुख माता समलेश्वरी देवी के चरणों में सूर्य की किरणें बिखरती हैं। इसके बाद शाम को जब सूर्य अस्तांचलगामी होता है तो पूर्व दिशा में स्थित और पश्चिमाभिमुख माँ महामाया के चरणों में अस्त होते सूर्य की किरणें पहुंचती हैं। इसे भक्त एक चमत्कार मानते हैं।
श्रीकृष्ण की बड़ी बहन योगमाया को मानते हैं महामाया
पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, उससे पहले योगमाया ने जन्म लिया था। वासुदेव ने आधी रात नवजात श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल ले जाकर नंदबाबा के यहां पैदा हुई कन्या को लेकर लौटे थे। उस कन्या को कंस के द्वारा मारे जाने के प्रयास के दौरान आकाशवाणी हुई थी कि कंस के काल ने अवतार ले लिया है। वही कन्या योगमाया थी, जिसे रायपुर के इस मंदिर में महामाया देवी के रूप में पूजा जाता हैं।
दूसरी देवी समलेश्वरी
पंडित शुक्ला के अनुसार मंदिर में महामाया देवी के विपरीत दिशा में माँ समलेश्वरी विराजी हैं। सबके प्रति समता भाव रखने वाली समलेश्वरी देवी को देवी सरस्वती के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर प्रवेश द्वार में प्रवेश करते ही दायीं ओर है। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि दोनों देवियों की कृपा पुरानी बस्ती इलाके के लोगों पर सदैव रहती है। नवरात्र के अलावा आम दिनों में भी दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
सैकड़ों साल से प्रज्वलित हो रही अखंड जोत
ऐसी मान्यता है कि राजा मोरध्वज के समय में देवी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई। मंदिर के गर्भगृह में सैकड़ों साल से अखंड ज्योति प्रज्वलित हो रही है।
नवरात्र में अलग से महाजोत
सदियों से प्रज्वलित अखंड ज्योति के अलावा साल में चार बार महाज्योति प्रज्वलित की जाती है। दो गुप्त नवरात्र में आषाढ़ और माघ तथा दो सामान्य नवरात्र चैत्र और आश्विन माह में महाज्योति प्रज्वलित होती है।
माचिस से नहीं, चकमक पत्थर से प्रज्वलन
महाज्योति को माचिस की तीली से प्रज्वलित नहीं करते बल्कि चकमक पत्थर को रगड़कर निकलने वाली चिंगारी से प्रज्वलित की जाती है।
हैहयवंशी राजाओं ने नवनिर्माण किया
महामाया मंदिर का इतिहास पुस्तक में उल्लेखित है कि हैहयवंशी राजाओं ने छत्तीसगढ़ में 36 किला (गढ़) बनवाया। हर किले में मां महामाया का मंदिर भी बनवाया। प्राचीन काल में राजा मोरध्वज द्वारा बनवाए गए मंदिर का भोसला राजवंशीय सामंतों ने नवनिर्माण करवाया।
श्रीयंत्र की आकृति में गुंबद
गर्भगृह की निर्माण शैली तांत्रिक विधि से की गई है। मंदिर का गुंबद श्री यंत्र की आकृति का बनाया गया है।
गर्भगृह में तिरछी दिखती है प्रतिमा
मां महामाया देवी मंदिर में माता की मूर्ति थोड़ी सी तिरछी दिखती है। इसका कारण यह बताया जाता है कि कल्चुरि वंश के राजा मोरध्वज, मां के स्वप्न में दिए आदेश पर खारुन नदी से प्रतिमा को सिर पर उठाकर पैदल चले। जब थक गए तो प्रतिमा को एक शिला पर रख दिया। रखते समय प्रतिमा थोड़ी तिरछी हो गई। इसके बाद लाख कोशिश की गई, किंतु प्रतिमा उस जगह से नहीं हिली। यही वजह है कि प्रतिमा तिरछी दिखाई देती है।