रायपुर। Vat Savitri Vrat Special: सनातन संस्कृति में वट वृक्ष को विशेष महत्व दिया गया है। वट वृक्ष सुहागिनों की आस्था का प्रतीक है। इस साल वट सावित्री पर्व 19 मई को मनाया जाएगा। शहर के अनेक वट वृक्ष के नीचे भक्ति, उल्लास का माहौल छाएगा। शहर के आधुनिकीकरण के चलते रोड चौड़ीकरण करने के लिए अनेक वृक्षों को काट दिया गया लेकिन शहर के बीचोबीच तीन वटवृक्ष ऐसे हैं जो पिछले 150 साल से महिलाओं की आस्था का केंद्र है। साल में एक बार जहां सैकड़ों महिलाएं पूजा करने जुटतीं हैं, वहीं भीषण गर्मी में वट वृक्ष के आसपास रहने वालों को ठंडकता का अहसास होता है।
वृक्ष के नीचे हर साल वट सावित्री व्रत पर पूजा करने के लिए सैकड़ों महिलाओं का हुजूम उमड़ता है। वृक्ष की पूजा करके पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की जाती है। मजदूर वर्ग और राहगीर वृक्ष की छांव तले आश्रय लेते हैं। इन इलाकों के लोगों के लिए वट वृक्ष संजीवनी की तरह है। ऐसी ही रोचक जानकारी दे रहे हैं, नईदुनिया के संवाददाता श्रवण शर्मा
टुरी हटरी का वट वृक्ष
इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में पुरानी बस्ती के जगन्नाथ मंदिर के सामने टुरी हटरी बाजार प्रारंभ किया गया। इस बाजार की विशेषता यह थी कि यहां दुकान लगाने वाली सभी युवतियां, महिलाएं ही होती थी और खरीदारी करने भी युवतियां, महिलाएं ही पहुंचती थीं। छत्तीसगढ़ी भाषा में युवतियों को टुरी और हटरी को बाजार कहा जाता है, इसलिए इस बाजार का नाम टुरी हटरी रखा गया। यह बाजार वट वृक्ष के नीचे लगता था। वर्तमान में इस बाजार का स्वरूप बदल चुका है, लेकिन आज भी इसे टुरी हटरी ही कहा जाता है।
टूरी हटरी का वट वृक्ष 150 साल से अधिक पुराना और महिलाओं की आस्था का केंद्र है। आसपास के इलाकों की सभी सुहागिनें इसी वट वृक्ष के नीचे वट सावित्री की पूजा करतीं हैं। इस बाजार से थोड़ी दूर मुख्य मार्ग के दुकानदारों को जहां कूलर, एसी चलाना पड़ता है, वहीं वट वृक्ष की छाया तले बैठकर व्यवसाय करने वाली महिलाओं को ठंडकता का अहसास होता है। महिला दुकानदार बतातीं हैं कि उनके परिवार में चार-पांच पीढ़ी से इसी वट वृक्ष के नीचे व्यवसाय किया जा रहा है। हमें भीषण गर्मी में भी गर्मी का अहसास नहीं होता।
बूढ़ेश्वर मंदिर के सामने वट वृक्ष
टुरी हटरी की तरह ही राजधानी के हृदय स्थल माने जाने वाले ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के समीप स्थित बूढ़ेश्वर मंदिर के सामने का वट वृक्ष से श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है। हर साल हिंदू संवत्सर के ज्येष्ठ अमावस्या और पूर्णिमा तिथि पर वट वृक्ष के नीचे पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करने महिलाओं का तांता लगता है। यह वृक्ष प्रतिदिन आसपास के दुकानदारों को सुकून की छांव प्रदान करता है। चंद कदमों की दूरी पर धरना स्थल पर प्रदर्शन करने वाले हजारों लोग जब जुटते हैं तो अपनी थकान मिटाने के लिए वट वृक्ष के नीचे आश्रय लेने आते हैं। कुछ समाजसेवी वृक्ष के नीचे मिट्टी के मटकाें से जल पिलाने की सेवा दे रहे हैं। धूप चाहे कितनी भी तेज हो, वृक्ष के नीचे मिट्टी के मटकों में रखा ठंडा जल पीकर पथिक तृप्त होते हैं। वृक्ष के चारों ओर बैठने के लिए घेरा बनाया गया है, दुकानदार, राहगीर यहां बैठकर शांति का अनुभव करते हैं।
सप्रे शाला हनुमान मंदिर का वट वृक्ष
पुराने वृक्षों में से एक और वट वृक्ष साहित्यकार माधवराव सप्रे स्कूल के सामने स्थित हनुमान मंदिर के पास है। मुख्य मार्ग के किनारे होने से भीषण गर्मी में लोग इस वृक्ष के नीचे आश्रय लेते हैं। पर्व, विशेष पर भंडारा प्रसादी का आयोजन वृक्ष के नीचे ही किया जाता है। बूढ़ापारा, सदरबाजार, सत्ती बाजार, कमासी पारा, कोतवाली चौक जैसे इलाकों से महिलाएं इस वृक्ष के नीचे पूजा करने जुटतीं हैं।
19 मई को वट सावित्री पूजन
19 मई को ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री पूजन किया जाएगा। सुहागिनें 16 श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र एवं अखंड सौभाग्यवती होने की प्रार्थना करने वट-वृक्ष की पूजा-अर्चना करेंगी। पुजारी पं. मनोज शुक्ला के अनुसार सावित्री ने अपने मृत पति को जीवित करने के लिए वट वृक्ष के नीचे शव रखकर मृत्यु के देवता यमराज को अपने सतीत्व से प्रभावित करके पति को जीवित कराने का वरदान मांगा था। जिस दिन सत्यवान के प्राण यमराज ने लौटाए उस दिन ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि थी। इसी मान्यता के चलते सुहागिनें सावित्री एवं यमराज की पूजा-अर्चना करके अखंड सौभाग्यवती होने की प्रार्थना करतीं हैं।