रायपुर। स्वामी विवेकानंद का आविर्भाव भारतीय इतिहास और संस्कृति में अविस्मरणीय सिद्ध हुआ है। उन्होंने दशकों पहले भारत की आजादी का सपना बुना था। उन्होंने देश को महज राजनीतिक रूप में ही नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से स्वतंत्र होने की प्रेरणा दी। वे भारतीय समाज की जिजीविषा पर विश्वास करते थे। अध्यात्म को वे भारत की प्रमुख विशेषता मानते थे, किंतु जब उन्होंने देखा कि यहां जीवन की उपेक्षा हो रही है, तब समाज में व्यापक परिवर्तन का आह्वान किया।
उनका मानना था कि हम जब तक भीतर से तैयार नहीं होंगे, तब तक दुर्बल ही बने रहेंगे। उक्त विचार स्वामी विवेकानंद पर आधारित ऑनलाइन संगोष्ठी में प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने व्यक्त किया।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा स्वामी विवेकानंद : सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक परिप्रेक्ष्य पर आयोजित वेब संगोष्ठी के मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो .शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पुणे के वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने की। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल, शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, संस्था के महासचिव डॉक्टर प्रभु चौधरी एवं लता जोशी मुंबई थीं।
उत्तम विचारों से व्यक्ति बनता है महान
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने जीवन निर्माण, व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण पर बल दिया। वे मानते हैं कि व्यक्ति विचारों से बनता है, इसलिए विचार उत्तम होना चाहिए। उनके प्रत्येक विचार अनुकरणीय हैं। उनका संदेश है कि किसी एक विचार को चुन लो और उसी विचार को जीवन बना लो।
वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार एवं अनुवादक सुरेश चंद्र शुक्ल, शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने कहा कि भारत के बाहर जाने वाले अपने साथ स्वामी विवेकानंद के संदेश को याद रखते हैं। स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को व्यापक मानवता का रास्ता दिखाया। उन्होंने सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाया। उनका संदेश है कि सुख का मार्ग सेवा से मिलता है।
संगठन में शक्ति
विशिष्ट अतिथि लता जोशी मुंबई ने कहा कि स्वामी विवेकानंद युग प्रवर्तक मनीषी थे। उन्होंने युवाओं को शक्तिशाली बनने के लिए प्रेरित किया। युवाओं में त्याग और सेवा की भावना को जागृत करने की बात उन्होंने की। वे संगठन शक्ति को अत्यधिक महत्व देते हैं। उनकी मान्यता है कि परिवर्तन तभी संभव है, जब हमारा समाज अंदर से सुदृढ़ बनेगा।
संस्था के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। वे मानते थे कि भारत की विशिष्टता धर्म है। धर्म कल्पना की नहीं, प्रत्यक्ष दर्शन की चीज है। धर्म के माध्यम से मनुष्य परमात्मा तक उठ सकते हैं। वर्तमान में उनके जीवन दर्शन, विचारों और उपदेशों को चरितार्थ करने की आवश्यकता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद ने स्वामी विवेकानंद के जीवन के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विवेकानंद के अनुसार सत्य एक ही है, उसे प्राप्त करने के कई रास्ते हैं। उन्होंने विभिन्न मत और पंथों के बीच सद्भाव का संदेश दिया।
रायपुर से डॉ. पूर्णिमा कौशिक ने स्वामी विवेकानंद के अवदान और राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित अटल श्री सम्मान समारोह की चित्रमय प्रस्तुति की। गरिमा गर्ग, पंचकूला ने स्वामी विवेकानंद पर केंद्रित कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं, उस महापुरुष ने जन्म लिया, विवेकानंद जी जिनका नाम। नर-पशु का भेद सबको बताया, किया नव युग भारत का निर्माण। लक्ष्य प्राप्ति का मंत्र बताया, जन-जन में था फूंका सम्मान। उठो, जागो चलते रहो सब, बता हम सबको प्रेरित किया।
संगोष्ठी के प्रारंभ में सरस्वती वंदना पटियाला की डॉ. प्रवीण बाला ने की। स्वागत भाषण एवं स्वागत गीत इंदौर के हरेराम वाजपेयी ने प्रस्तुत किया। संस्था का परिचय एवं प्रस्तावना राष्ट्रीय प्रवक्ता रायपुर की डॉ. मुक्ता कौशिक ने दी।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में साहित्यकार एवं संस्था की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर सुवर्णा जाधव, मुंबई, अनिल ओझा, डॉ. मुक्ता कौशिक, रायपुर, डॉ. पूर्णिमा कौशिक, रायपुर, डॉ. शिवा लोहारिया, जयपुर, गरिमा गर्ग, पंचकूला, सुनयना सोहनी, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, मथेसुल जयश्री अर्जुन, रीना सुरादकर, संगीता हड़के, अनुराधा अच्छवान, संजय मंसाराम माहेर, संगीता तिवारी आदि सहित अनेक संस्कृतिकर्मी एवं साहित्यकारों ने भाग लिया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन साहित्यकार डॉ. पूर्णिमा कौशिक ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. मुक्ता कौशिक ने जताया।