सुमेरु मठ में है विश्व का एकमात्र श्रीयंत्र आकार का गुंबद, जिसमें हैं 43 कोण, प्रत्येक में है पारद शिवलिंग
सुमेरु मठ का गुंबद आकर्षण का केंद्र है। दावा किया जाता है कि विश्व में यह एकमात्र श्रीयंत्र आकार का गुंबद है। जानें खासियत
By Ashish Kumar Gupta
Edited By: Ashish Kumar Gupta
Publish Date: Sun, 26 Jun 2022 02:11:34 PM (IST)
Updated Date: Sun, 26 Jun 2022 02:11:34 PM (IST)

रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती, कुशालपुर स्थित ऐतिहासिक दंतेश्वरी मंदिर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर प्रोफेसर कालोनी में सुमेरु मठ का गुंबद आकर्षण का केंद्र है। दावा किया जाता है कि विश्व में यह एकमात्र श्रीयंत्र आकार का गुंबद है, जिसमें 43 कोण बने हैं और प्रत्येक कोण में पारद शिवलिंग है। कुल 43 पारद शिवलिंग का गुंबद किसी मठ-मंदिर में नहीं है।
चार साल में तैयार हुआ गुंबद
सुमेरू मठ की छत पर सीमेंट से गुंबद बनाने में चार साल लगे। साल 2018 में गुंबद बनना प्रारंभ हुआ था। एक साल में गुंबद के सभी कोण तैयार कर लिए गए थे। 2020 में प्रतिष्ठापना की जानी थी। इस दौरान कोरोना महामारी के चलते धर्मस्थल महीनों तक बंद रहे। पिछले साल सभी कोणों में शिवलिंग की स्थापना की गई। इस साल यह श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा, भक्ति, आस्था और आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार
सुमेरु मठ के पीठाधीश्वर प्रचंड वेगनाथ के अनुसार सवा 37 फीट लंबा-चौड़ा और 30 फीट ऊंचाई वाला श्रीयंत्र राजधानी के अलावा कहीं नहीं है। श्रीयंत्र में स्थित 43 पारद शिवलिंग के नीचे सभागृह में शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। श्रीयंत्र के नीचे सभागृह में बैठकर ध्यान, मंत्रोच्चार करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
18 साल से त्रिकुंड में हवन
मठ में तीन कोण वाला हवन कुंड है। इसमें पिछले 18 साल से प्रतिदिन हवन किया जाता है। त्रिकोण कुंड के उपर कलश से हमेशा घी की बूंदें अग्नि कुंड में गिरती है। हवन से आसपास का वातावरण शुद्ध होता है।
अंबूवाची योग में विशेष पूजा
मठ में हर साल ज्येष्ठ-आषाढ़ माह में जब सूर्य आद्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है, तब विशेष हवन-पूजन किया जाता है। इसे अंबूवाची योग कहते हैं। इस दौरान तीन दिवसीय अघोर महोत्सव मनाया जाता है। श्रद्धालु हवन में आहुति देकर सुख, समृद्धि की कामना करते हैं। सुमेरू मठ में अघोर महोत्सव में अघोर पंथ के गुरु बाबा औघड़नाथ की पूजा-आराधना, अखंड योनि कुंड में पंच संधि काल में हवन किया जाता है।