नीलम वैष्णव
छुईखदान (नईदुनिया न्यूज)। परम ज्ञानी पंडित लेकिन अहंकार भाव के चलते लोभ लालच अत्याचार प्रवृत्तियों से ग्रसित लंकापति पर नारी मां सीता के अपहरण किए जाने से भगवान श्रीराम ने दशमी के दिन ही रावण का वध किया था इसीलिए इस तिथि को जगह-जगह रावण के पुतले बनाकर जलाया जाता है विजय दशमी पर्व पर प्रतीकात्मक रूप से रावण के बनाए गए पुतले भी खंडित करने के तौर तरीके अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न तरीके से की जाती है अब तो गांव गांव में रावण का संहार का आयोजन किया जाने लगा हैन
रियासत में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व
छत्तीसगढ़ की 14 रियासतों में से एक छुईखदान रियासत में मनाई जाने वाली दशहरा पर्व रियासत कालीन मान्यताओं एवं परंपराओं में भिन्नता है इस रियासत में स्थानीय कुंभकारों द्वारा निर्मित मिट्टी के रावण का पुतला बनाया जाता है रावण का पुतला बनाने का स्थल आज तक अपरिवर्तित है ग्राम नवागांव मार्ग पर रावण का पुतला बनाने का कार्य दशहरा पर्व के पूर्व से ही आरंभ किया जाता है मिट्टी के पुतले का वृहद स्वरूप दशहरा के दिन ही पूर्ण कर लिया जाता है तथा पुतले के संहार तक उसकी सुरक्षा की जाती है।
रावण वध की परंपरा लगभग 250 वर्षों से
वैष्णव धर्म लंबी रियासत की नगरी छुईखदान में प्रथम राजा महंत रूप दास प्रथम महंत रियासत वर्ष 1750 से 1780 तक उसके पश्चात क्रमशाह महंत तुलसीदास जमीदार कोडका 1780 महंत बालमुकुंद लगभग 1845 तक महंत लक्ष्मण दास 1845 से 1887 तक ,महंत श्याम किशोर दास 1887 से 1896 तक, राधावल्लभ किशोर दास 1896 से 1898 तक, महंत दिग्विजय युगल किशोर दास 1898 से 1903 तक महंत भुधर किशोर दास 1930 से 1940 एवं अंतिम राजा ऋतु किशोर दास 1940 द्वारा प्रतिवर्ष विजयदशमी के दिन रावणभाठा में मिट्टी से बने रावण के पुतले का संहार करने की निरंतर परिपाटी का निर्वहन किया गया है अब उसी परंपरा का निर्वहन राजा गिरिराज किशोर दास द्वारा किया जा रहा है।
पहले लगता था दरबार
विजयदशमी के दूसरे दिन राजमहल में राजा का दरबार सजता था इस दरबार में दूर दराज से लोगों की भीड; सजती थी क्षेत्र के मालगुजार गोटिया और ग्राम प्रमुख अपनी ओर से राजा का तिलक कर उन्हें भेंट एवं उपहार देते थे बदले में राजा उपहार देने वालों का सम्मान करते हुए पान का बीड़ा देकर उपहार देने वालों का सम्मान करते थे पश्चात राज महल के सामने भव्य आतिशबाजी की जाती थी आतिशबाजी का आइटम स्थानीय नुमाइंदा मुसलमान द्वारा निर्मित पटाखों से होती थी राज दरबार के दिन राजमहल को आम लोगों के लिए खोल दी जाती थी किंतु यह परंपरा समय के साथ विलीन हो गयी।
रावण वध करने का अधिकार राजा को ही
छुईखदान रियासत के अंतिम महंत रितुपर्णा किशोर दास जी के स्वर्ग गमन पश्चात उनके एकमात्र पुत्र घनश्याम किशोर दास जो राजपरिवार का उत्तराधिकारी हुआ वह रियासत की परंपरा को आगे बढ़ाया एवं उनके भी निधन पश्चात वर्तमान 3 वर्षों से राज परिवार का उत्तराधिकार प्रतिनिधि राजा गिरिराज किशोर दास द्वारा अपनाई जा रही हैन दिवंगत राजा के जेष्ठ पुत्र राजा गिरीराज किशोर दास जी अपने अनुज देव राज किशोर दास जी अपने पुरोहित के साथ शाही सवारी में विराजमान होकर आगे आगे ब्राह्मणों द्वारा निशान धारित किए हुए एवं भजन मंडली द्वारा भजन गायन करते हुए काफिला रावण वध हेतु रावण भाटा के लिए प्रस्थान किया जाता है।
मिट्टी के बने रावण के पुतले का शिरोछेदन
रावण भाटा पहुंचकर जहां मंत्रोधाार के साथ भगवान राम की पूजा अर्चना के बाद रियासत के राजा प्रमुख द्वारा मिट्टी से बने विशालकाय रावण के पुतले का शिरोछेदन किया जाता है शास्त्र के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण को जलाया नहीं था बल्कि उसके नाभि में स्थित अमृत कुंभ को निशाना बनाकर रावण वध किया था उसी शास्त्रोक्त परंपरा के अनुसार छुईखदान रियासत के प्रमुख भगवान श्री राम के प्रतिनिधि के रुप में मिट्टी के रावण का शिरो छेदन करते हैं और रावण की मिट्टी अपनी तलवार की नोक से निकालकर उसे अमृत मान कर अपने पास सुरक्षित रख लेते हैं साथ ही हनुमान जी का निशान वैष्णव संप्रदाय के निंबार्क मत का प्रतीक है यही कारण है कि हनुमानजी के निशान को धनुष बाण का प्रतीक मानकर उसी से रावण का वध किया जाता है।
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