नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में 87 वर्षीय इतिहासकार प्रोफेसर एमेरिटस रोमिला थापर का बायोडाटा मांगे जाने के बाद से जेएनयू का माहौल गर्मा गया है। शिक्षक संघ उनके समर्थन में उतर अया है। दावा यह भी है कि जल्द रोमिला थापर की जेएनयू से विदाई हो सकती है।
जिन रोमिला थापर को लेकर मामला गर्माया हुआ है वो एक वामपंथी इतिहासकार हैं तथा इनके अध्ययन का मुख्य विषय "प्राचीन भारतीय इतिहास" रहा है। इनका जन्म 30 नवंबर 1931 को लखनऊ में हुआ था। इस समय वह दिल्ली में रह रही हैं। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से एएल बशम के मार्गदर्शन में 1958 में डॉक्टर की उपाधि प्राप्त की।
रोमिला थापर ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। इससे पहले वह रीडर के पद पर डीयू और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दे चुकी हैं।
उन्होंने "द पास्ट बिफोर अस : हिस्टोरिकल ट्रेडिशंस ऑफ अर्ली नार्थ इंडिया", "द आर्यन : रिकास्टिग कंस्ट्रक्टस", "अर्ली इंडिया", "ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया" और "अशोका एंड द डिक्लाइन ऑफ द मौर्याज" इनकी लिखी हुई पुस्तकें हैं। हाल ही में इन्होंने गुजरात के प्रसिद्ध "सोमनाथ मंदिर" के इतिहास पर लेख लिखा है।
रोमिला थापर कॉर्नेल विश्वविद्यालय, पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय और पेरिस में कॉलेज डी फ्रांस में विजिटिग प्रोफेसर हैं। वह 1983 में भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कॉरेस्पोंडिंग फेलो चुनी गई थीं। क्लूज पुरस्कार (द अमेरिकन नोबेल) पाने के साथ उन्हें दो बार पद्म विभूषण पुरस्कार की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया।
यह है मामला
JNU की अकादमिक परिषद (एसी) और कार्यकारी परिषद (इसी) में इस प्रोफेसरशिप के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। रोमिला थापर को पत्र लिखकर उनके अकादमिक रिकॉर्ड का मूल्यांकन करने के लिए बॉयोडाटा मांगा गया है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने रविवार देर शाम बयान जारी किया कि जेएनयू के अधिनियम 32 के तहत प्रोफेसर एमेरिटस को नियुक्त करने की ऍथारटी कार्यकारी परिषद को है। इसमें 75 वर्ष तक की आयु के सभी प्रोफेसर को एमेरिटस का स्वास्थ्य स्टेटस, उनकी उपलब्धता जैसे कई चीजों में परखा जाता है। एक सब कमेटी ऐसे प्रोफेसर का रिव्यू करती है। इसी नियम के तहत पत्र लिखा गया है। यह एक प्रक्रिया है जिसे एमआईटी और प्रिंसटन विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान भी अपने यहां लागू करते हैं।
रोमिला थापर 1993 से जेएनयू में बतौर एमेरिटस प्रोफेसर सेवाएं दे रही हैं। इससे पूर्व तकरीबन बीस वर्षों तक वह जेएनयू में ही प्रोफेसर रही हैं। बीते माह रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार की ओर से रोमिला को भेजे पत्र में कहा गया है कि जेएनयू प्रशासन ने उनके कार्यों के मूल्यांकन के लिए एक समिति गठित करने का फैसला लिया है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर उनकी सेवाओं के बारे में निर्णय लिया जाएगा।
क्या होता है एमेरिटस प्रोफेसर
किसी संकाय की ओर से प्रस्तावित सेवानिवृत्त ख्याति प्राप्त व्यक्तियों व नामों को कार्यकारी परिषद (ईसी) और अकादमिक परिषद (एसी) की मंजूरी के बाद एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर मनोनीत किया जाता है। ये शोधार्थियों को पढ़ाने के साथ ही उन्हें सुपरवाइज कर सकते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें कोई वित्तीय लाभ नहीं दिया जाता है।