प्रभात उपाध्याय, नोएडा। कहते हैं कि जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। दिल्ली के पंडित दीनदयाल उपाध्याय इंस्टीट्यूट फॉर द फिजिकली हैंडीकैप्ड ने कुष्ठ रोगियों की इस पीड़ा को समझा है। कुष्ठ रोगियों में खासतौर से वे जिनके पैर में संक्रमण हो जाता है और जिन्हें जूते पहनने में तकलीफ होती है, उनके लिए यह इंस्टीट्यूट एक खास तरह का जूता तैयार कराने जा रहा है।

इस खास किस्म के जूते को बनाने के लिए नोएडा स्थित फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआई) ने न केवल सहमति प्रदान की है बल्कि इसका सैंपल भी तैयार करना शुरू कर दिया है। एफडीडीआई की योजना कुष्ठ रोगियों के लिए जूते की कई वैरायटी तैयार करने की है। ताकि मरीज अपनी पसंद के अनुसार विकल्प चुन सकें।

जूते की खासियत

जूते के अंदर का हिस्सा नॉन एलर्जिक फोम से तैयार किया जाएगा। यह फोम पैरों में संक्रमण के खतरे को रोकेगा। जूते के अंदर इतनी जगह होगी कि पैरों में बैंडेज बांधने के बाद भी इसे आसानी से पहना जा सके। जूते की बनावट ऐसी होगी कि यह देखने में भी आकर्षक लगे। अभी तक जो जूता उपलब्ध है वह काफी मोटा होता है और देखने में भद्दा लगता है।

उत्पादन में भी मदद करेगा एफडीडीआई

एफडीडीआई के विशेषज्ञ सिर्फ विशेष जूता ही विकसित नहीं करेंगे, बल्कि बड़े स्तर पर इसके उत्पादन के दौरान सहयोग और दिशा-निर्देश भी देंगे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय इंस्टीट्यूट फॉर द फिजिकली हैंडीकैप्ड ने अपने प्रस्ताव में क्लीनिकल ट्रायल सफल होने के बाद बड़े पैमाने पर जूते के उत्पादन में भी एफडीडीआई से सहयोग मांगा है। आमतौर पर एफडीडीआई सिर्फ शोध कर जूता विकसित ही करता है।

पहले भी तैयार हुआ था जूता

एफडीडीआई ने वर्ष 1996 में भी कुष्ठ रोगियों के लिए विशेष जूता तैयार किया था। यह जूता लैप्रोसी मिशन के लिए तैयार किया गया था। एफडीडीआई के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 20 सालों में तकनीक में बदलाव तो हुआ ही है, साथ ही नए फैब्रिक भी आ गए हैं। अब नए फैब्रिक की मदद से जूता तैयार किया जाएगा।

"पंडित दीनदयाल उपाध्याय इंस्टीट्यूट फॉर द फिजिकली हैंडीकैप्ड ने हमें कुष्ठ रोगियों के लिए जूता विकसित करने का प्रस्ताव दिया था। हमने अपनी सहमति दे दी है। सैंपल तैयार करने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।"

-वीबी पारवतीकर, तकनीकी सलाहकार, एफडीडीआई

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