हाई कोर्ट ने चप्पल और सैंडल का अंतर किया स्पष्ट
हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला आया जिसमें उसे केंद्र सरकार को चप्पल और सैंडल के बीच फर्क समझाना पड़ा।
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Publish Date: Sun, 29 Jan 2017 10:36:42 PM (IST)
Updated Date: Sun, 29 Jan 2017 10:38:06 PM (IST)

नई दिल्ली। हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला आया जिसमें उसे केंद्र सरकार को चप्पल और सैंडल के बीच फर्क समझाना पड़ा। दरअसल, दोनों उत्पादों के निर्यात के दौरान कस्टम ड्यूटी (सीमा शुल्क) में दोगुना का अंतर है। सैंडल के निर्यात पर 10 फीसद तो चप्पल के निर्यात पर पांच फीसद कस्टम शुल्क वापसी है।
जिसे लेकर हाई कोर्ट के समक्ष चेन्नई की एक कंपनी ने याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट और नजमी वजीरी की खंडपीठ ने केंद्र सरकार और रेवेन्यू विभाग के आदेश के विपरीत यह स्पष्ट किया कि जिस महिला फुटवियर के पीछे स्ट्रैप (फीता) नहीं लगा हो उसे सैंडल कहते हैं, न कि चप्पल।
केंद्र सरकार का मानना था कि जिस फुटवियर के पीछे स्ट्रैप लगता है उसे सैंडल कहते हैं। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में सरकार की सोच पूर्वाग्रह से ग्रसित है कि महिलाओं की सैंडल बैक स्ट्रैप के बिना बन ही नहीं सकती है। ऐसे में सरकार द्वारा कंपनी पर लगाए गए जुर्माने व शुल्क वापसी के आदेश को खारिज किया जाता है।
कंपनी ने वर्ष 2003 में याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि उसने महिलाओं की सैंडल की एक खेप को निर्यात किया था। ऐसे में उसे 10 फीसद कस्टम शुल्क वापस मिलना चाहिए था, लेकिन सरकार ने पांच फीसद शुल्क वापस किया था।