एक किशोरवय छात्र अपने जीवन को लेकर बेहद महत्वाकांक्षी था। किंतु उसके साथ दिक्कत यह थी कि वह हमेशा अपने कार्यों को लेकर चिंता में घुलता रहता था। यदि उससे कभी कोई भूल हो जाए, तो वह उसके बारे में घंटों क्षुब्ध और अशांत रहता। वह रात-रातभर अपनी पाठ्य पुस्तकों के पन्ने उलटते-पलटते हुए यही सोचा करता कि परीक्षा में पहली रैंक हासिल कर पाएगा या नहीं!
वह अकसर अपने कार्यों में खामियां निकालता रहता और सोचता - 'क्या ही अच्छा होता, यदि मैंने उस काम को अमुक ढंग से किया होता।" एक दिन उसकी कक्षा के सभी विद्यार्थियों को जीव विज्ञान के शिक्षक प्रयोगशाला में लेकर पहुंचे। प्रयोगशाला में सभी बच्चे एक जगह जाकर खड़े हो गए और शिक्षक अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। उनके सामने रखी डेस्क के बिलकुल किनारे पर एक दूध की बोतल रखी थी।
क्लास के सभी बच्चे उस दूध की बोतल को देखते हुए सोच रहे थे कि आखिर इस बोतल का उनके शरीर विज्ञान के पाठ से क्या वास्ता हो सकता है! तभी अचानक वह शिक्षक अपनी कुर्सी से उठे। इससे डेस्क को थोड़ा धक्का लगा और उस पर रखी दूध की बोतल जमीन पर गिरकर चूर-चूर हो गई। सारा दूध नाली में बह गया।
यह देख शिक्षक बोले - 'दूध तो बह गया। अब इसके लिए रोने से क्या फायदा!" उन्होंने सभी बच्चों को पास बुलाकर टूटी बोतल के टुकड़ों को दिखाते हुए कहा - 'मैं चाहता हूं कि तुम सब इसे अच्छी तरह से देखो और सबक लो। जैसा कि तुम देख ही रहे हो, सारा दूध नाली में बह निकला है। अब यदि सारी दुनिया भी एक साथ उसके ऊपर बड़बड़ाने लगे और अपने बाल नोचने लगे, तो भी दूध की एक बूंद भी हाथ नहीं लग सकती।
उस समय थोड़ी-सी भी सावधानी दूध को बचा सकती थी, किंतु अब कुछ नहीं हो सकता। अब तो यही अच्छा है कि हम इस घटना को भूलकर दूसरे कार्य में लग जाएं।" इससे क्लास के अन्य बच्चों के साथ-साथ उस किशोरवय छात्र को भी व्यावहारिक जीवन के बारे में एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिली।
सीख यह कि यथासंभव हानि के प्रति सावधान रहा जाए, किंतु यदि इतने पर भी हानि हो ही जाए, तो उस पर रोने से कोई फायदा नहीं। बेहतर यही है कि उस हानि को भूल जीवन में आगे बढ़ा जाए।