
नेपोलियन के एक सैनिक से संबंधित एक घटना है। उस सैनिक को उसकी बटालियन के नायक ने नेपोलियन के पास एक गोपनीय संदेश लेकर भेजा था। संदेश बेहद महत्वपूर्ण था और सैनिक से कहा गया था कि वह जितनी जल्दी हो सके, इसे नेपोलियन तक पहुंचा दे। सैनिक सौंपे गए दायित्व को पूरी निष्ठा के साथ पूरा करने के लिए तत्पर था और तेजी से अपने घोड़े को दौड़ाए जा रहा था।
उसने संदेश पहुंचाने की जल्दी में अपने घोड़े को इतना तेज दौड़ाया कि गंतव्य स्थल तक पहुंचते-पहुंचते घोड़े ने दम तोड़ दिया। सैनिक इस बात की परवाह किए बगैर तुरंत नेपोलियन के कक्ष की ओर भागा और जाकर वह पत्र उन्हें थमा दिया। नेपोलियन उस सैनिक की कर्तव्यनिष्ठा देख बहुत खुश हुए और उन्होंने उसकी सराहना करते हुए पत्र का जवाब भी उसी शीघ्रता से ले जाने के लिए कहा।
नेपोलियन जान चुके थे कि सैनिक का घोड़ा मर चुका है। लिहाजा उन्होंने सैनिक से कहा - 'बहादुर जवान, यह लो मेरा घोड़ा और तुरंत इस पत्र का उत्तर लेकर रवाना हो जाओ।" यह सुनकर सैनिक भौचक्का रह गया और वह डरते-डरते बोला - 'लेकिन श्रीमान...!"
सैनिक अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि नेपोलियन ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा - 'मैं जानता हूं कि तुम क्या कहना चाहते हो। पर एक बात याद रखो कि दुनिया का ऐसा कोई घोड़ा नहीं कि उसकी सवारी तुम न कर सको।" यह सुनकर सैनिक ने नेपोलियन को सलाम किया और पत्र का जवाब लेकर तुरंत वहां से रवाना हो गया।
घटना छोटी-सी है, पर उन सभी लोगों के लिए लागू होती है, जो स्वयं को किसी महत्वपूर्ण उपलब्धि के अयोग्य समझते हैं। हमारे जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जिन्हें अनपेक्षित कहा जा सकता है और उनका उपयोग करने में भी हम संकोच करने लगते हैं।
इस संसार में मनुष्य के लिए न तो कोई वस्तु या उपलब्धि अलभ्य है और न ही कोई व्यक्ति किसी प्रकार अयोग्य। अयोग्यता है तो इतनी भर कि वह स्वयं को उस उपलब्धि के योग्य अनुभव नहीं करता। यदि अपनी क्षमताओं को पहचानकर उनका विकास किया जाए तथा आत्मीयता की संजीवनी द्वारा उन्हें जीवंत बनाया जाए तो हम बड़ी से बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं।