मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के जीवन से जुड़ा एक प्रसंग है। एक बार शिवाजी अपने शयनकक्ष में सोए हुए थे, तभी एक बालक सुरक्षा प्रहरियों की नजरों से किसी तरह बचता हुआ हाथ में तलवार लिए उनके कक्ष में आ पहुंचा। वह शिवाजी पर हमला करने ही वाला था कि उनके सेनापति तानाजी, जो सतत उनके साथ साए की तरह रहते थे, ने उसे देख लिया। इससे पूर्व कि वह बालक कुछ कर पाता, उसे बंदी बना लिया गया।
तभी शिवाजी की भी नींद खुल गई। उन्होंने जब बालक के हाथ में तलवार देखी तो उससे पूछा - 'बालक, तुम इस तरह तलवार लेकर मेरे कक्ष में क्यों आए? क्या तुम हमें मारना चाहते थे?" बालक ने डरते-डरते सिर हिलाया। तब शिवाजी ने उससे पूछा - 'आखिर तुम हमें मारना क्यों चाहते थे?"
तब बालक ने कहा - 'महाराज, मेरे पिता आपकी सेना में एक सैनिक थे। वे युद्ध में मारे गए। मेरी मां काफी दिनों से बीमार चल रही है। हम मां-बेटा बेहद कष्टमय जीवन जी रहे हैं। मैं किसी काम की तलाश में निकला था कि आपके शत्रु सुभागराय ने मुझे आपके विषय में काफी भला-बुरा कहा और बोला कि तू मेरे और तेरे शत्रु शिवाजी को मार दे, तो तुझे बहुत-सा धन दूंगा। मैं उसी कारण यह पता होते हुए भी कि पकड़े जाने पर मृत्युदंड मिलेगा, आपको मारने चला आया।"
उसकी बात सुनकर तानाजी ने कहा - 'तू रंगेहाथ पकड़ा गया है और तूने यह भी स्वीकार कर लिया है कि यहां पर किस मकसद से आया था। अब तुझे अपनी जान देनी होगी।" बालक बोला - 'मेरी मां बहुत बीमार है। मैं उसे प्रणाम कर कल सुबह वापस आ जाऊंगा। कृपया अभी मुझे जाने दें।" तानाजी हंसे।
शिवाजी सभी बातें देख-सुन रहे थे। उन्होंने कहा - 'बालक, तुम जाओ। कल आ जाना।" अगले दिन बालक मालोजी राव ने दरबार में आया और समर्पण कर दिया। शिवाजी ने भरी सभा में कहा - 'यह सत्यनिष्ठ बालक हमारे वीर सैनिक का बेटा है। भूल हमसे हुई है। हमने उसके परिवार का ध्यान नहीं रखा। हम इसे क्षमा कर आजीवन भरण-पोषण की व्यवस्था करते हैं।"
इस घटना के बाद शिवाजी ने अपने सैनिकों के जीवनकाल व मृत्यु के बाद उनके परिवार के उचित भरण-पोषण की योजना बनाई।