
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू होने के बाद देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (डीएवीवी) से जुड़े 10 कालेजों को ऑटोनामस का दर्जा मिल गया है। ये कॉलेज अपनी परीक्षा खुद आयोजित करते हैं और अपने स्तर पर ही परिणाम भी जारी करते हैं। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालय के पास पहले जैसी परीक्षा शुल्क या मूल्यांकन संबंधी आय नहीं आ रही, लेकिन इसके बावजूद कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां कम नहीं हुई हैं। इन कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के परीक्षा फार्म, रिजल्ट, टेबुलेशन चार्ट और पुराने रिकॉर्ड को सुरक्षित रखना अब भी विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी है।
इन दस्तावेजों की जांच, सत्यापन और दीर्घकाल तक उनका संरक्षण विश्वविद्यालय को ही करना पड़ता है। इस काम के लिए अलग से स्थान, स्टाफ और तकनीकी संसाधनों की जरूरत पड़ती है। जिस पर विश्वविद्यालय का खर्च बढ़ रहा है। इसे लेकर विश्वविद्यालय ने कॉलेजों से प्रति विद्यार्थी 300 रुपये शुल्क लेने का फैसला किया है। यह शुल्क रिकॉर्ड के संरक्षण और दस्तावेजों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च की पूर्ति के लिए लगाया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन इस संबंध में आदेश जारी कर चुका है और नई व्यवस्था आगामी परीक्षाओं से लागू होगी।
परीक्षा नियंत्रक डॉ. अशेष तिवारी ने बताया कि स्वशासी कॉलेजों के पुराने रिकॉर्ड से लेकर ताजा परीक्षा परिणाम तक सभी दस्तावेज सुरक्षित रखने होते हैं। विशेष कक्ष बनाया गया है, जिसकी व्यवस्था और रखरखाव पर खर्च बढ़ रहा है। इसी कारण प्रति विद्यार्थी 300 रुपये लेने का निर्णय लिया गया है।
डीएवीवी के अधीन कुल 190 कॉलेज आते हैं, जिनमें से 10 को अब तक स्वशासी दर्जा मिल चुका है। सरकारी और निजी दोनों तरह के कॉलेज शामिल हैं। करीब 25 हजार विद्यार्थी ऐसे हैं जिनकी परीक्षा कॉलेज स्तर पर आयोजित की जाती हैं। परीक्षा विश्वविद्यालय से अलग होने के बावजूद उनका रिकॉर्ड विश्वविद्यालय के पास ही रहता है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह प्रस्ताव सितंबर में तैयार किया था। इसके बाद 17 अक्टूबर को कार्यपरिषद की बैठक में इसे मंजूरी दे दी गई। अधिकारियों के मुताबिक कॉलेज भले ही स्वशासी बन गए हों, लेकिन खेल गतिविधियों, सहायता राशि, एनएसएस जैसे कार्यों पर भी विश्वविद्यालय को खर्च करना होता है।