एंटरटेनमेंट डेस्क। ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म 'मिली' ने 50 साल पूरे कर लिए हैं, जो 20 जून 1975 को रिलीज हुई थी। इस फिल्म के जरिए न सिर्फ कहानी को बताया गया, बल्कि इससे मानवीय भावनाओं, प्रेम और जीवन की नश्वरता का गहरा प्रमाण भी देखने को मिला। मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत इस फिल्म पर आशा बत्रा ने एक आलेख भी लिखा है।
आज से 50 साल पहले जब 'मिली' रिलीज हुई थी तो उसके 5 दिन बाद ही आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी। इमरजेंसी के कारण फिल्म को दर्शक नहीं मिले। इसने औसत व्यवसाय किया, लेकिन कहा जाता है कि मुंबई (तब बॉम्बे) के नावेल्टी सिनेमाहॉल में लगातार 17 हफ्ते तक इस फिल्म को चलाया गया। ऋषिकेश मुखर्जी के डाइरेक्शन में बनी यह फिल्म हिंदी सिनेमा की कई बेहतरीन फिल्मों में से एक है।
इस फिल्म की शुरुआत विमान की उड़ान भरने से होती है। इसमें 'मिली' के पिता अशोक कुमार हाथ हिलाते हुए दिखाई देते हैं। पिता कहते हैं कि मिली चली गई, मुझे पता है कि वो कभी वापस नहीं आएगी। इस डायलॉग को सुनने के बाद भी दर्शकों के लिए मिली के लौटने की उम्मीद आखिर तक बनी रही।
बता दें कि मिली नाम की नायिका इस फिल्म में 'परनीशियस एनीमिया' बीमारी से जूझ रही हैं, जो एक लाइलाज बीमारी है। जब इस बीमारी का पता नायक को लगता है, तो वह सदमे में चला जाता है। लेकिन दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो गया। नाटकीय घटनाक्रम के बाद वो मिली से शादी करता है और दोनों विदेश हनीमून के लिए भी जाते हैं।
ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में स्टार कास्ट ने दर्शकों का दिल जीत लिया। ‘आनंद’, ‘गुड्डी’, ‘चुपके चुपके’ की तरह मिली ने भी अपने अभियन से एक अलग छाप छोड़ दी। ऋषिकेश की यह खासियत थी कि वह कास्ट के हिसाब से ढलने वाले अभिनेताओं का चयन कर उन्हें बड़े पर्दे पर पेश करते थे।
ऋषिकेश मुखर्जी ने जब भी अमिताभ को कास्ट किया है, वो ऋषिकेश के अमिताभ ही नजर आए हैं। 'आनंद' फिल्म में मुख्य भूमिका राजेश खन्ना की रही थी। वहीं मिली में जया भादुड़ी ने अपने अभिनय की अलग ही चमक बिखेर दी। दोनों फिल्मों में एक समानता साफ दिखाई देती है कि दोनों किरदारों ने टूटे हुए अमिताभ को सुकून दिया। फिल्म के किरदारों की बात करें तो ये इतने प्रभावशाली हैं कि वे किसी कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारे रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े लोग हैं। इसकी खासियत की वजह से ऋषिकेश को फिल्म जगत में एक नई पहचान मिली।
संगीतकार और गायक एस.डी. बर्मन ‘बड़ी सूनी-सूनी है जिंदगी ये जिंदगी’ गीत बनाते समय अस्वस्थ हो गए थे। इस गीत को पंचम (आर.डी. बर्मन) की निगरानी में रिकॉर्ड किया, जिसकी रिकॉर्डिंग किशोर कुमार ने बर्मन दा को अस्पताल में ही सुनाई थी।
‘मिली’, जापानी क्लासिक ‘इकिरू’ और लियो टालस्टाय की कहानी ‘द डेथ आफ ईवान इलिच’ में काफी समानता है। इनमें जीवन समाप्ति के छोर तक पहुंचकर भी जिंदगी का असली अर्थ ढूंढना पहचान बना। इन तीनों कहानियों में मुख्य किरदार लाइलाज बीमारी से जूझ रहे हैं, लेकिन मौत के डर से टूटने की बजाय छोटे-छोटे पलों में प्रेम और शांति खोजते हैं।