Raid 2 : रेड 2 से पूरा हुआ माधवेंद्र झा का हाशिए से पोस्टर तक का सफर
बॉलीवुड के भाषायी परिवेश पर टिप्पणी करते हुए माधवेंद्र बताते हैं कि बॉलीवुड में हिंदी फिल्में बनती हैं लेकिन फिल्म प्रोडक्शन से लेकर मार्केटिंग तक इसमें अंग्रेजी का ही बोलबाला रहता है। सेट पर कलाकारों और क्रू की बातचीत, फिल्म के रचनात्मक पहलुओं पर चर्चा और स्क्रिप्ट की लिपि तक, सब कुछ अंग्रेजी में रहता है।
Publish Date: Mon, 26 May 2025 04:17:56 PM (IST)
Updated Date: Mon, 26 May 2025 08:37:39 PM (IST)
रेड टू।बिहार के कटिहार में जन्मे माधवेंद्र झा 1998 में मनोज वाजपेयी की फिल्म सत्या से रू-ब-रू हुए। इस फिल्म से वह इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने अभिनय को ही अपना करियर बनाने का फैसला कर लिया।
20 साल के संघर्ष के बाद मिली ’कामयाबी’
- अभिनय में अपना करियर बनाने के लिए माधवेंद्र सबसे पहले कटिहार से कंगणा रणौत के संसदीय क्षेत्र मंडी और फिर मुंबई गए ताकि वे अभिनय की बारीकियों को सीख सकें।
- तब से उनका सफर संघर्ष और कई उतार-चढ़ाव का साक्षी रहा है। इस बीच छिटपुट भूमिकाओं से शुरू हुआ उनका 20 साल का सफर आज 200 करोड़ की कॉलेक्शन कर चुकी फिल्म रेड 2 के पोस्टर तक पहुंच गया है।
वह अजय देवगन के साथ इस फिल्म के पोस्टर में हैं। माधवेंद्र ने बातचीत में बताया कि रेड 2 का पोस्टर बॉय बनना उनके लिए बड़ी उपलब्धि है।
वह कॉलेज से अजय देवगन की फिल्मों के दीवाने रहे हैं। ऐसे में जब उन्हें अपने पसंदीदा स्टार एक्टर के साथ शूटिंग करने का मौका मिला तब शुरू में वह बेहद रोमांचित और नर्वस था।
उनके अनुसार यह रोमांच कुछ ऐसा था जैसे कई साल बस-ट्रेन में सफर करने के बाद पहली बार हवाई जहाज में चढ़ने पर होता है। ![naidunia_image]()
मुंबई में बिखेरी कटिहार की चमक
- बिहार के कटिहार से संबंध रखने वाले अभिनेता ने अपने संघर्ष के शुरूआती दिनों के बारे में बताया कि पहले उन्हें बड़े-बड़े प्रोजेक्ट में एक-दो दिन की शूटिंग का काम मिलता था।
- ऐसे में उनका प्रोजेक्ट की टीम से कोई गहरा संबंध नहीं होता, उन्हें पटकथा का पता नहीं होता, वह किसी मेहमान की तरह शूटिंग में शामिल होते और अपनी भूमिका से जुड़ा अभिनय कैमरे के सामने करते।
- उन्हें मौके पर ही अपने डॉयलाग मिलते और उन्हें वहीं उन्हें याद करके कैमरे के सामने परफॉर्म करना होता था। ऐसे में कहानी और प्रोजेक्ट से जुड़ पाना मुश्किल होता।
- अब वह प्रोजेक्ट से ज्यादा गहराई से जुड़ पाते हैं। बकौल झा, उनका संघर्ष हालांकि आज भी जारी है, फिर भी संघर्ष के शुरूआती दिनों में उन्हें बिहार से ही जुड़े अभिनेता पंकज त्रिपाठी से काफी मदद मिली।
- पंकज ने उनका फिल्मी दुनिया के लोगों से परिचय करवाया, उनके काम की सिफारिश की और वह उन्हें लगातार प्रोत्साहित करते रहे।
- उनके अनुसार पंकज आज भी अपनी जमीन से जुड़े हुए हैं और मुंबई की चकाचौंध में भी उन्होंने बिहार की सरलता को अपने दिल में संजोकर रखा हुआ है।
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- माधवेंद्र राजनीतिक और समकालीन मुद्दों पर बेबाक राय रखते हैं। बिहार से पलायन के दर्द के बारे में अभिनेता ने बताया कि दिल्ली और मुंबई में हालांकि बिहार के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह हैं लेकिन उन्हें अपनी पहचान पर हमेशा गर्व रहा है।
इसके अलावा जब हम किसी से घुल मिल जाते हैं, तब संबंधित व्यक्ति भी अपने पूर्वाग्रह छोड़कर व्यक्तिगत व्यवहार के आधार पर राय बनाता है।
बिहार की राजनीति के बारे में उनकी राय है कि राज्य में सरकार चाहे किसी की भी बने लेकिन राज्य में औद्योगिक प्रगति को रफ्तार देना या औद्योगिक आधार बनाने की शुरूआत करना सभी पार्टियों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
कृषि में रोजगार संभावनाएं सीमित हैं, ऐसे में बिहार को अगर अपनी बड़ी आबादी को नौकरी देनी है तो राज्य में हर हाल में उद्यमियों को आकर्षित किया जाना चाहिए और औद्योगिक विकास को गति दी जानी चाहिए।
इससे लोगों का पलायन रुकेगा और राज्य विकास सूचकांक पर देश के अगड़े राज्यों की पंक्ति में खड़ा हो पाएगा।
ऑपरेशन सिंदूर पर बॉलीवुड के कुछ अभिनेताओं की चुप्पी पर उन्होंने कहा कि वह हर स्थिति में देश के साथ खड़े हैं।
उनका कहना है कि हम सीमा पर तैनात अपने जवानों की वजह से ही सुरक्षित हैं और भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाले आतंकियों के साथ-साथ पाकिस्तान में बैठे आतंकवाद के पनाहगारों, आतंकवाद के प्रशिक्षण केंद्रों और मददगारों पर नकेल कसना बिल्कुल सही कदम है।
जब तक हम आतंक की जड़ पर प्रहार नहीं करेंगे, तब तक हम आतंकवाद को हरा नहीं पाएंगे। प्रेरणा कुमारी, पत्रकार