RIP Lata Mangeshkar: स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का 6 फरवरी 2022, रविवार को निधन हो गया। लता दीदी दशकों से सुरीली आवाज का पर्याय बनीं हुई हैं। लोग उनकी आवाज के दीवाने ही नहीं है बल्कि उनकी आवाज को दैवीय वरदान भी मानते हैं। कई लोग उस आवाज में अपना दर्द सुनते हैं तो कई खुशी, कई उसी आवाज से आनंद पाते आए हैं तो कई उसी आवाज को सुन-सुनकर अपने आंसुओं को उससे जोड़ते आए हैं। मगर एक समय था जब लताजी को इसी आवाज के जरिए बहुत संघर्ष करना पड़ा था और उन्हें पहली कमाई के रूप में सिर्फ 25 रुपए मिले थे।
लताजी को पहली बार मंच पर गाने के लिए 25 रुपए मिले थे। इसे ही वे अपनी पहली कमाई मानती हैं। उन्होंने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म 'किती हसाल" के लिए गाना गाया था। इसके बाद उन्हें फिल्म संगीत की दुनिया में अपना नाम बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। दरअसल, ये वो समय था जब लताजी के पहले की पीढ़ी की गायिकाओं की शैली छाई हुई थी और लता अपने गायन के शुरुआती दौर में थीं। शुरुआत में तो लताजी भी अपनी मूल आवाज के बजाय तत्कालीन लोकप्रिय गायिकाओं की तरह गाने लगी थीं। मगर जब उन्हें यह अहसास हुआ कि उनकी अपनी आवाज में वे ज्यादा बेहतर गा सकती हैं तो उन्होंने अपनी मौलिक आवाज में ही गाना शुरू किया।
लताजी शुरू से स्वाभिमानी भी रहीं और स्वयं तथा अपने अन्य गायक साथियों के लिए वे फिल्मी दुनिया के दिग्गजों से भी अपनी बात मनवाने में कभी हिचकी नहीं। एक बार तो उन्होंने रॉयल्टी के मुद्दे पर उस दौर के सबसे सफल गायक मोहम्मद रफी से नाराजगी मोल ले ली थी। यहां तक कि रफी साहब और लताजी के बीच लंबे समय तक बोलचाल भी बंद रहा।
दरअसल, लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के बीच गानों पर रॉयल्टी को लेकर विवाद हो गया था। लता गानों की रॉयल्टी गायक को भी दिए जाने के समर्थन में थी, जबकि रफी गानों की रॉयल्टी में विश्वास नहीं रखते थे। इस विवाद के कारण इन दोनों सितारों ने आपस में बात करना ही बंद कर दिया। इससे तत्कालीन संगीत निर्देशकों को बहुत दिक्कतें होती थीं। वे लताजी और रफी साहब को लेकर गाना रिकॉर्ड करने की योजना बनाते लेकिन ये दोनों दिग्गज अपनी-अपनी बात पर अड़े रहते। अंतत: सालों बाद अभिनेत्री नरगिस की वजह से दोनों ने फिर से बात करना शुरू किया।